Sunday, October 26, 2014

Hindi Motivational Stories - "जीवन"

जीवन

जीवन के कुछ पहलू शयद हम जीवन के अंतिम शान तक नहीं जान पाते। जो दिखता है इन आँखों से हम उसे ही सत्य मान लेते है। और कभी समय के अंतराल में हम उसे असत्य मान लेते है। सत्य और असत्य ,सही और गलत , अच्छा और बुरा इन सब के बीच मन बहुत बार चिन्तन करता है। और बहुत समझ के साथ हम चलते भी है। लेकिन फिर भी कुछ है जो अभी समझना बाकी है। मन की ये जिज्ञासा हर बार जगती है और बुझती है। और हम कभी उसे सुनते है और कभी उसे अनसुना  करते है।

जीवन के इन ही पहलूओं में हम ख़ुशी और गम का अनुभव करते है। और मन की उलझन भी यही है। और इस लड़ाई में हम भुत और भविष्य की कल्पना करते है। और योग कहता है वर्त्तमान में जीयो। और व्यक्ति वर्त्तमान में रहता हुवे भी भुला है की उसे जीना है। हर पल हर शान को जीना है। एक बात मुझे यहाँ ऐसा समझ में आ रहा है। जहा तक ज्ञान की बात है कुछ न कुछ ज्ञान हर एक के पास है जरूर लेकिन ये अलग बात है की व्यक्ति उस ज्ञान का समरण या उसे प्रैक्टिस में कितना लता है। ज्ञान हमें मीडिया से मिलता है माता पिता से मिलता है, गुरु से मिलता है संग से मिलता है, पढ़ाई से मिलता है, खुदरत से मिलता है, भगवान से मिलता ही , किताबो से मिलता है  और आज कल तो इलेक्ट्रॉनिक गैजेट से भी मिलता है। चलो और भी बहुत विकल्प है जहा से ज्ञान हम ले सकते है। और ज्ञान की बात या समझ की बात इस में भी अंतर होता है। इस विषय में चर्चा हो सकती है ये फिर कभी। लेकिन जीवन जीना ये  एक कला है।  तो हम सब को आज इस विषय पर चर्चा करनी होगी। वर्त्तमान के इस समय सीमा को देखे तो लगता है। की हम को जीवन जीने की कला को अब प्रैक्टिस में लाना होगा। ऐसा नहीं की में तो अच्छा हूँ और मेरे साथी भी अच्छे है और मैं सब के साथ अच्छा रहता हूँ , नहीं ये सिर्फ ऊपर की बात है ,क्यों ऐसा में कह रहा हूँ  ये एडजस्टमेंट है। लेकिन जीवन जीने की कला इस से आगे है। जहा आपको सहारे या सपोर्ट की जरुरत नहीं लगती।

हर पल हर दिन नया हो अपने आप में एक अनोखा अनुभव आपका रूहानी अस्तित्व आपकी अनोखी पहचान हर कर्म के साथ चलते फिरते चाहे घर में या बाहर हो। किसी को आपका साथ मिले तो वो अपने को  भाग्यशाली माने और आप उसका धन्यवाद माने। कोई मालिकपण नहीं लेकिन ईश्वर और उसकी रचना को हर पल हर शान सलाम ऐसा धन्यवाद का गीत आपके साथ अनहद नाद की तरह बजता रहे ।  

Wednesday, October 15, 2014

Hindi motivational Stories................तीन दिन का राज्य

तीन दिन का राज्य


एक राजकुँवर थे। स्कूल में पढ़ने के लिये जाते थे। वहाँ प्रजा के बालक भी पढ़ने जाते थे। उनमें से पॉँच-सात बालक राजकुँवर के मित्र हो गये।  वे मित्र बोले - " आप राजकुँवर हो राजगद्दी के मालिक हो। आज आप प्रेम और स्नेह करते हो , लेकिन राजगद्दी मिलने पर ऐसा ही प्रेम निभायेंगे, तब हम समझेंगे कि मित्रता है , नहीं तो क्या है ? ये हम समझ जायेंगे। " राजकुँवर बोले कि अच्छी बात है। समय बीतता गया। सब बड़े हो गये। राजकुँवर को राजगद्दी मिल गयी। एक-दो वर्ष में राज्य अच्छी प्रकार जम गया। राजकुँवर ने अपने मित्रों में से एक को बुलाया और कहा कि तुम्हे याद है कि तुमने कहा था - " राजा बनने के बाद मित्रता निबाहो, तब समझे। ' 'अब तुम्हें तीन दिन के लिए राज्य दिया जाता है। आप राजगद्दी पर बैठो और राज्य करो। ' वह बोला - ' अन्नदाता ! वह तो बचपन की बात थी। मैं राज्य नहीं चाहता। ' बहुत आग्रह करने पर उस मित्रने तीन दिन के लिये राज्य स्वीकार कर लिया।

वह मित्र राजगद्दी पर बैठा और उस दिन खान-पान ऐशे-आराम में मगन हो गया। दूसरे दिन सैर-सपाटा आदि में लगा रहा। रात हुई तो बोला- ' हम राजमहल में जायेँगे। ' सब बड़ी मुश्किल में पड़ गये। रानी बड़ी पतिव्रता थी। वह मित्र तो अड़ गया कि सब कुछ मेरा है, मैं राजा हूँ तो रानी भी मेरी है। रानी ने अपने कुलगुरु ब्राह्मण देवता से पुछवाया कि अब मैं क्या करुँ ? गुरूजी महाराज ने उस तीन दिन के लिए राजा बने मित्र से पूछा कि आप महलों में जाना चाहते है तो राजा की तरह जाना होगा। इसलिये आपका ठीक तरह से श्रृंगार होगा। और एक के बाद एक व्यक्ति आते गये और अलग-अलग श्रृंगार करते रहे दर्जी ,नाई ,इत्र लगने वाला ऐसा करते करते पूरी रात बीत गयी। सुबह हो गयी  और अखरी दिन था समय पूरा हो गया। और फिर राजा को राजगद्दी मिल गयी। राजा ने अपने दूसरे मित्र को बुलाया और आग्रह किया और तीन दिन के लिये राज्य दे दिया और बोला कि मैं, मेरी स्त्री, मेरा घर - ये सब तो मेरे है। मैं भी आपकी प्रजा हूँ। बाकी सारा राज्य आपका है। वह मित्र तीन दिन के लिये राजा बन गया।

राज्य मिलते ही उस मित्र ने पूछा कि मेरा कितना अधिकार है ? मन्त्री ने जवाब दिया - " महाराज ! सारी फौज, पलटन, खजाना और इतनी पृथ्वी पर आपका राज्य है। ' उसने दस-बीस योग्य अधिकारियों को बुलाकर कहा कि हमारे राज्य में कहाँ-कहाँ, क्या-क्या चीज की कमी है, किस को क्या-क्या तकलीफें है - पता लगाकर मुझे बताओ। उन्होंने आकर खबर दी - फलाँ-फलाँ गॉव में पानी की तकलीफ है, कुआँ नहीं है, धर्मशाला नहीं है , पाठशाला नहीं है।उस राजाने हुक्म दिया ये सब काम तीन दिन में पुरे हो जाना चाहिये। खजांची को कहा इन्हें जो चाहिये वो दे दो और हर गॉव की जरुरत तीन दिन में पूरी  हो जाय। जितना भी खर्च हो वो तुरंत पूरी कर दो। तीन दिन पुरे होते-होते समाचार आने लगा की इतना काम हुआ है इतना बाकी है। राजा ने जल्दी पूरी करने का आदेश दिया। और मित्रने राज्य वापस राजा को दे दिया। राजा बड़े प्रसन्न हुए और बोले कि हम तुम्हें जाने नहीं देंगे, अपना मन्त्री बनायेँगे। हमें राज्य मिला, लेकिन हमने प्रजा का इतना ध्यान नहीं रखा, जितना आपने तीन  दिन में रखा है। अब राजा तो नाम मात्र के रहे और वह मित्र सदा के लिये उनका विश्वास पात्र मन्त्री बन गया।

सीख - इसी प्रकार हमें बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था - ऐसे तीन दिन भगवन ने हमें राज्य दिया है। अब जो रूपया-संग्रह और भोग भोगने में लगे है, उनकी तो हजामत हो रही है। और जो दूसरे मित्र की तरह सेवा कर रहे है, उनको भगवन कहते है-

"मैं तो हूँ भगतन को दास, भगत मेरे मुकुट मणि।।" 

इसलिये अब सेवा करो और भगवन को याद करते रहो। उसका दिया हुआ सब कुछ है दुसरो की सेवा में लगाने से भगवन के विश्वास पात्र बनेंगे। और उसके धाम में निवास करेंगे। और अब निर्णय अपने को करना है की हजामत करवानी है या परमात्मा का साथ उनके धाम में रहना है।