Monday, September 29, 2014

Hindi Motivational Stories.....................................आदर्श माँ

आदर्श माँ 


                        एक गाँव की सच्ची घटना है। उस गाँव में हिन्दु और मुसलीम दोनों रहते थे। मुसलमान के एक घर बालक हुआ, पर बालक की माँ मर गयी। वह बेचारा बड़ा दुःखी हुआ। एक तो स्त्री के मरने का दुःख और दूसरा नन्हे-से बालक को पालन कैसे करुँ- इसका दुःख। उसके पास में ही हिन्दू रहता था। उसका भी दो - चार दिन का ही बालक था। उसकी स्त्री को पता लगा तो उसने अपने पति से कहा उस बालक को ले आओ, मैं पालन करुँगी। अहीर उस मुसलमान के बालक को ले आया। अहीर की स्त्री ने दोनों बालको का पालन किया। उनको अपना दूध पिलाती, स्नेह से रखती, प्यार करती। उसके मन में बेदभाव नहीं था कि ये मेरा बालक है और ये दूसरे का बालक है।

    जब बालक बड़ा हुआ पढने लिखने  लायक हो गया तो स्त्री ने उस मुसलमान को बुलाकर कहा कि अब तुम अपने बच्चे को ले जाओ और पढ़ाओ- लिखाओ, जैसी मर्जी आये वैसे बनाओ। मुसलमान ने बच्चे को पढ़ाया -लिखाया और बच्चा भी पढ़-लिखकर एक हॉस्पिटल में नौकरी भी करने लगा। कुछ सालों के बाद अहिरे की स्त्री को छाती में बहुत पीड़ा महसूस हुआ तो उसे उसी हॉस्पिटल में भर्ती किया। डॉक्टर ने कहा खून की कमी है अगर उन्हें खून चढ़ाया जाय तो यह ठीक हो जायेगी। खून कौन दे ? परीक्षा की गयी। मुसलमान का वह लड़का जो वहाँ काम करता था। देवयोग से उसका खून मिल गया। उस माईने तो उसको पहचाना नहीं पर उस लड़के ने उसे पहचान लिया हाँ येही मेरी पालन करने वाली माँ है। बचपन में इसका ही दूध पीकर मैं  बड़ा हुआ, इसी कारण खून में एकता आ गयी। डॉक्टर ने कहा इसका खून चढ़ाया जा सकता है। उस से पूछा गया क्या तुम अपना खून दे सकते हो ? लड़के ने कहा हाँ मैं खून तो दे दूँगा पर मैं दो सौ रुपये लूँगा। अहिरे ने उसको दो सौ रुपये दे दिये। खून माईको चढ़ा दिया गया और उसका शरीर ठीक हो गया और वह अपने घर चली गयी।

      कुछ दिनों बाद वह लड़का अहिरे के घर गया और माँ के चरणो में हज़ार-दो-हज़ार रुपये रखकर कहा ' आप ही मेरी माँ है मैं आपका ही बच्चा हूँ। आपका ही दूध पीकर मैं बड़ा हुआ हूँ। ये रुपये आप ले ले। उसने लेने से माना करने पर लडके ने हॉस्पिटल की बात याद दिलायी। कि खून के दो सौ रुपये इसलिये लिए थे कि मुफ़्त में आप खून न लेती और खून न लेने से आपका बचाव नहीं होता। यह खून तो वास्तव में आपका ही है। ये शरीर भी आपका है। मेरे रुपये शुद्ध कमाई के है। आपकी कृपा से मैं लहसुन और प्याज भी नहीं खता हूँ। अपवित्र , गन्दी चीजें मेरी अरुचि हो गयी है। अंतः ये रुपये आपको लेने ही पड़ेंगे।  ऐसा कहकर उसने रुपये से दिये।

   अहिरे की स्त्री बड़े शुद्ध भावना वाली थी, जिस से उसके दूध का असर ऐसा हुआ कि वह लड़का मुसलमान होते हुए भी अपवित्र चीज नहीं खाता था।

सीख - हम सब का पालन माता, बहनो ने ही किया पर उनका गुणगान नहीं करते लेकिन अहिरे की स्त्री का करते है, क्यों कि अपने बच्चे का तो हर कोई पालन करते है। जानवर भी अपने बच्चे की सम्भल करता है। लेकिन दूसरे के बच्चे को अपने बच्चे जैसा समझ पालन कर फिर उन्हें सौप देना ये बड़ी बात है और उसका असर बच्चे पर कितना प्रभावशाली रहा ये हमने सुना। इसलिए अहिरे की स्त्री का हम आप गुणगान करते है।

Sunday, September 21, 2014

Hindi Motivational Stories...........................बाते छोटी पर बड़े काम की

बाते छोटी पर बड़े काम की 

1. एक साधु थे। वे किसी से कुछ माँगते नहीं थे। माँगना तो दूर रहा, यदि कोई उनसे पूछता कि रोटी लोगे तो वे साफ 'ना ' कह देते, भले ही वे दो-तीन दिन से भूखे क्यों न हो। हाँ !. उनके सामने कोई रोटी रख देता तो वे खा लेते थे।

2.  ऋषिकेश की बात है। एक साधु बाहर गये हुए थे। पीछे से कोई उनकी कुटिया में ठण्डाई की सामग्री रख गया। साधु ने आकर उसे देखा तो वे कुटिया के भीतर नहीं गये, बाहर ही रहे। जब तक चीटियाँ उस सामग्री को खा नहीं गयी, तब तक वे साधु कुटिया के बाहर ही रहे।

3. ऋषिकेश की ही एक बात है श्रीस्वामीज्योति जी महाराज की फटा  कुर्ता देखकर एक साधु सुई-धागा ले आया। महाराज जी ने कहा सुई-धागा यही रख दो, मैं खुद सिल लूँगा। महाराज जी ने अपने हाथो से सिलाई कर ली। और दूसरे दिन वह साधु आया तो महाराज ने उसको सुई-धागा लौटा दिया। वह साधु बोला कि इसकी फिर कभी भी जरुरत पड़ सकती है, इसलिये पास में सुई-धागा रहना चाहिये। महाराज जी ने कहा कि इस " चाहिये ". को मिटाने लिये ही तो हम यहाँ  जंगल में आये है। इस सुई-धागे को यहाँ से ले जाओ। यह 'चाहिये ' हमें नहीं चाहिये।

4. एक संन्यासी थे। एक बार मेले में उन्होंने अपनी स्त्री को देखा तो पूछ बैठे कि तुम यहाँ कब आयी ? स्त्री ने उत्तर दिया कि आपने संन्यास ले लिया, क्या अब भी मेरे को पहचानते हो ? उत्तर सुनकर संन्यासी को चेत भी हुआ और लज्जा भी आयी तब उन्होंने अपना सिर झुका लिया। फिर उन्होंने जीवन भर सिर झुकाये रखा, कभी किसी को सिर उठाकर नहीं देखा। और मुक्ती को प्राप्त हुवे।

5 . समुद्र-तटकी  दीवार पर एक सज्जन बैठे थे। उन्होंने देखा कि एक जवान आदमी हाथ में धोती-लोटा लिये आया। उसने धोती-लोटा किनारे पर रख दिया और कपड़े उतारकर स्नान के लिये समुंद्र में घुस गया।  इतने में समुद्र की एक बड़ी लहर आयी और उसको अपने साथ ले गयी। धोती-लोटा किनारे पड़ा रह गया और वह आदमी फिर समुद्र से बाहर नहीं आया। दीवार पर बैठे सज्जन यह सब देख रहे थे। उनको जीवन की क्षणभुंगरता का साक्षात्कार हो गया था। वे भी दीवार से उतरकर अज्ञात स्थान की ओर चल दिये और भगवन के भजन में लग गये। फिर कभी लौटकर घर नहीं गये।

  त्याग में विचार कैसा ? कोई मरता है तो क्या विचार करके मरता है ?

Thursday, September 18, 2014

Hindi Motivational stories................................त्याग के आदर्श

त्याग के आदर्श 

1. एक साधु थे। उनसे किसी ने पूछा कि  ' आपके पास एक पैसा भी नहीं है , फिर आप भोजन कहाँ पाते हो ? ' साधु ने कहा कि ' भिक्षा पा लेते है। ' उसने फिर पूछा कि कभी भिक्षा न मिले तो ? साधु बोला - ' तो फिर भूख को ही पा लेते है। ' भूख को पाने का तात्पर्य है कि आज हम भोजन नहीं करेंगे, क्यों कि भूख का ही भोजन कर लिया। 

2. एक सज्जन साइकिल में चढ़कर कही जा रहे थे। साइकिल सड़क के बीच में थी। पीछे से एक ट्रकवाला आया और ट्रक रोककर बोला कि  " अरे। बीच में क्यों चलते हो ? या इस तरफ चलो, या  उस तरफ !' सज्जन को जागृति आयी चेत हो गया कि जीवन में भी मैं ऐसे ही बीच में चल रहा हूँ , अब एक तरफ हो जाना चाहिये। वे सब कुछ छोडकर साधु बन गये। 

सीख - बातें बहुत छोटी पर समझ में आ जाये तो जीवन परिवर्तन हो जायेगा पुरुष से आप महापुरुष बन जायेंगे। 


Wednesday, September 17, 2014

Hindi Motivational Stories....... ..............सौ रुपये की एक बात

सौ रुपये की एक बात

एक सेठ था। वह बहुत ईमानदार तथा धार्मिक प्रवृत्तिवाला था। एक दिन उसके यहाँ एक बूढ़े पण्डितजी आये। उनको देखकर सेठ की उन पर श्रद्धा हो गयी। सेठने आदरपूर्वक उनको बैठाया और प्रार्थना की कि मेरे लाभ के लिये कोई बढ़िया बात बताये। पण्डितजी बोले कि बात तो बहुत बढ़िया बताऊँगा, पर उसके दाम लगेंगे ! एक बात के सौ रुपये लगेंगे। सेठ ने कहा कि आप बात बताओ, रुपये मैं दे दूँगा। पण्डितजी बोले - ' छोटा आदमी यदि बड़ा हो जाय तो उसको बड़ा ही मानना चाहिये, छोटा नहीं। ' सेठ ने मुनीम से पण्डित जी को सौ रुपये देने के लिये कहा। मुनीम ने सौ रुपये दे दिये। सेठ ने कहा - और कोई बात बताये। पण्डितजी बोले - 'दूसरे के दोष को प्रगट नहीं करना चाहिये। 'मुनीम ने सौ रुपये दे दिये  सेठ ने कहा और कोई बात , पण्डितजी  - '  जो काम नौकरो से हो जाय, उसको करने में अपना समय नहीं लगाना चाहिये। ' मुनीम ने इस का भी सौ रुपये दिये सेठ ने कहा एक और बात सुना दो , पण्डितजी ने कहा - ' जहाँ एक बार मन हट जाय, वहाँ फिर नहीं रहना चाहिये। ' मुनीम ने इस के भी सौ रुपये दिये। पण्डितजी चले गये। सेठ चारों बातें याद कर ली और उनको घर में तथा दुकान में कई जगह लिखवा दिया।

कुछ समय के बाद सेठ के व्यपार में घाटा लगना शुरू हो गया। घाटा लगते-लगते ऐसी परिस्तिथि आयी कि सेठ को शहर छोड़कर दूसरी जगह जाना पड़ा। साथ में मुनीम भी था। चलते-चलते वे एक शहर के पास पहुँचे। सेठ ने मुनीम को शहर में कुछ खाने-पीने का सामान लाने के लिये भेजा। देवयोग से उस शहर के राजा की मृत्यु हो गयी थी। उसकी कोई संतान नहीं थी। लोगो ने ये निश्चय किया था। जो भी व्यक्ति उस दिन उस शहर में सब से पहला प्रवेश करेगा उसे राजा बना दिया जायेगा। और जैसे ही मुनीम उस शहर में पहुँचा तो लोगो ने उसे हाथी पर बैठाकर धूमधाम से महल में ले गये और राजसिंहासन पर बैठा दिया।

इधर सेठ मुनीम के लौटने की प्रतीक्षा कर रहा था। जब बहुत देर हो गयी, तब सेठ मुनीम का पता लगाने के लिये खुद शहर में गया। शहर में जाने पर सेठ को पता लगा कि मुनीम तो यहाँ का राजा बन गया है। सेठ महल में जाकर उससे मिला। राजा बने हुवे मुनीम ने सेठ को सारी कहानी बता दी। तब सेठ को पण्डितजी की बात याद आ गयी। 'छोटा आदमी बड़ा हो जाय तो उसे बड़ा ही समझना चाहिये। ' सेठ ने राजा को प्रणाम किया। राजाने उसको मन्त्री बनाकर अपने पास रख लिया।

राजा के घुड़्सलका जो अध्यक्ष था, उसका रानी के साथ अनैतिक सम्बन्ध था। सेठजी को इस बात का पता चला सेठ ने देखा वे दोनों एक साथ बैठ कर बाते कर रहे है। सेठ को पण्डितजी बात याद आयी। 'दूसरे के दोष को प्रगट नहीं करना है। ' सेठ के पास् शाल थी उसे उसने  रस्सी पर डाल दिया ताकि दूसरा कोई न देखे पर जब रानी वहाँ से लौट रही थी तो रस्सी पर शाल देख कर उसको शंका हुआ और उसने पता लगाया ये शाल किस का है। रानी को पता चला की ये शाल सेठ का है। तो रानी ने सोचा मेरी बात राजा तक ना बता दे इस डर से वह राजा के पास गयी और सेठ के खिलाफ रानी ने उलटी सुल्टी बाते बताकर बोली आज मन्त्री की नीयत ठीक नहीं थी। उसने मेरे साथ बुरा व्यवहार करना चाहा पर मैंने जब चिल्लाया तो मन्त्री वहाँ से चला गया लेकिन मैंने ये उसकी शाल चीन ली देखो। राजा को रानी की बात लग गयी उसने तुरन्त निर्णय ले लिए मन्त्री को मार डालने की। और राजा ने मॉस वाले को बता दिया की कल जो भी मेरी चिट्टी लेकर आयेगा उसे मार देना।

राजा ने दूसरे दिन मन्त्री को भुलाया और कहा ये चिट्टी लो और मॉस लेकर आओ। सेठ तो ब्राह्मण था वह मॉस को छूता तक नहीं। सेठ को फिर पण्डितजी बात याद आयी - जो काम नौकरो से हो जाये उसको करने में समय नहीं गवाना है। इस लिए सेठ मॉस लाने के लिए एक नौकर को भेज दिया और इधर राजा को अपने गुप्तचरों द्वारा मालूम हुआ की रानी की ही गलती थी। और उसका घुड़्सलका से तालुकात है। तब राजा को बहुत पश्चताप हुआ की उसने गलती से अपने ईमानदार सेठ को मार दिया। और बाद में राजा को इस बात का पता लगा की सेठ जिन्दा है तो वह झट सेठ से मिलने आये और माफ़ी माँगी और पुनः मन्त्री पद संभालने को कहा। पर सेठ ने उन्हें पण्डितजी की बात याद दिलायी और कहा में तो पण्डितजी की बातो  के अनुसार चलता हूँ उनकी वजह से मेरे प्राण बच गए। पण्डितजी ने ये भी कहा था। 'जब कही से दिल हट जाय तो वहाँ फिर नहीं रहना चाहिये। ' इस लिए मैं यहाँ से जा रहा हूँ।

सीख - जीवन में ज्ञान की बातो को धारण करने से फायदा ही होता है। इसलिये परमात्मा की राय को समझों और अपने जीवन को अनमोल बना दो। 

Thursday, September 11, 2014

Hindi Motivational Stories.......................................विलक्षण साधना

विलक्षण साधना


    रामायण में इस बात का ज़िक्र है। शबरी भगवान राम की परम भक्त थी। वा पहले ' शाबर ' जाति की एक भोली- भाली लड़की थी। शाबर जाति के लोग कुरूप होते थे। परन्तु शबरी इतनी कुरूप थी कि शाबर-जाति के लोग भी उसको स्वीकार नहीं करते थे। माँ-बाप को बड़ी चिन्ता होने लगी कि लड़की का विवाह कहाँ करे। ढूंढ़ते- ढूंढ़ते आखिर  उनको शाबर-जाति का एक लड़का मिला। माँ-बाप ने रात में ही शबरी का विवाह कर दिया और लडके को कहा कि भैया, तुम अपनी स्त्री को रातो  तो रात ले जाना। लड़का मान गया और वह अपनी स्त्री शबरी को लेकर चल दिया। आगे-आगे लड़का चल रहा था पीछे शबरी चल रही थी। चलते-चलते वे दण्डक वन में आ पहुँचे। वहाँ सूर्योदय हुआ। तो लडके के मन में आया अपनी स्त्री को देखूँ तो सही, मेरी स्त्री कैसी है। लडके ने पीछे मुड़कर शबरी को देखा तो उसकी कुरूपता देखकर वह डर के मारे वहाँ से भाग गया कि यह तो कोई डाकण है, मेरे को खा जायेगी ! अब शबरी बेचारी दण्डकवन में अकेली रह गयी। वह पीहर से तो आ गयी और ससुराल का पता नहीं। अब वह कहाँ जाय !

   दण्डकवन में रहनेवाले ऋषि शबरी को अछूत मानकर उसका तिरस्कार करने लगे। वहाँ "मतंग " नाम के एक वृद्ध ऋषि रहते थे, उन्होंने शबरी को देखा तो उस पर दया आ गयी। उन्होंने शबरी को अपने आश्रम में शरण दे दी। दूसरे ऋषियों ने विरोध किया कि अपने एक अछूत जाति की स्त्री को शरण दी है। मतंग ऋषि उनकी बात नहीं सुनी और शबरी को अपने बेटी की तरह अपने पास रखा। और शबरी उनकी सेवा बहुत दिल से करती। आश्रम के सब लोग जब सो जाते थे, तब शबरी आश्रम की साफ सफाई करती और ऋषि जहाँ से आना जाना करता उस रास्ते को फूलो से सजा देती। उनके लिए पानी लाकर रखना। सब ऋषि मुनि शबरी का तिरस्कार किया करते थे, इसलिए वह छिपकर, डरते - डरते उनकी सेवा करती थी। वह डरती थी कही मेरा साया ऋषियो पर पड़े तो वे अशुद्ध हो जायेंगे। आखिर एक दिन वह समय आ पहुँचा, जो सब के लिए अनिवार्य है ! मतंग ऋषि का शरीर छूटने का समय आ गया। जैसे माँ-बाप के मरते समय बालक रोता है, ऐसे शबरी भी रोने लग गयी ! मतंग ऋषि ने कहा कि बेटा ! तुम चिन्ता मत करो। एक दिन तेरे पास भगवान राम आयेंगे ! मतंग ऋषि शरीर छोड़कर चले गये।

   अब शबरी भगवान राम के आने की प्रतीक्षा करने लगी ! प्रतीक्षा बहुत ऊँची साधना है। इस में भगवान का विशेष चिन्तन होता है। भगवान का भजन-ध्यान करते है तो वह इतना सजीव साधना नहीं होता, निर्जीव-सा होता है। परन्तु प्रतीक्षा में सजीव साधना होती है। रात में किसी जानवर के चलने से पत्तों की खड़खड़ाहट भी होती तो शबरी बाहर आकर देखती कि कहीं राम तो नहीं आ गये। वह प्रतिदिन कुटिया के बाहर पुष्प बिछाती और तरह-तरह के फल लाकर रखती। फलों में भी चखकर बढ़िया-बढ़िया फल रामजी के लिये रखती। रामजी नहीं आते तो दूसरे दिन फिर ताजे फल लाकर रखती। उसके मन में बड़ा उत्साह था कि रामजी आयेंगे तो उनको भोजन कराऊंगी।

  प्रतीक्षा करते करते एक दिन शबरी की साधना पूर्ण हो गयी ! मुनि के वचन सत्य हो गये। भगवान राम शबरी की कुटिया में पधारे -  दूसरे बड़े-बड़े ऋषि-मुनि प्रार्थना करते है कि महाराज ! हमारी कुटिया में पधारों। पर भगवान कहते है कि नहीं, हम तो शबरी की कुटिया में जायेंगे।

  जैसे शबरी के ह्रदय में भगवान से मिलने की उत्कण्ठा लगी है, ऐसे ही भगवान के मन में शबरी से मिलने की उत्कण्ठा लगी है ! भगवान का स्वभाव है कि जो उनको जैसे भजता है, वे भी उसको वैसे ही भजते है - "ये यथा माँ प्रपधन्ते तास्तथेव भजाम्यहम् " ( गीता ४ /११ )

  शबरी के आनन्द की सीमा नहीं रही ! वह भगवान के चरणों में लिपट गयी।  जल लाकर उसने भगवान के चरण धोये।  फिर आसन बिछाकर उनको बिठाया। फल लाकर भगवान के सामने रखे और प्रेमपूर्वक उनको खिलाने लगी। शबरी पुराने ज़माने की लम्बी स्त्री थी। रामजी बालक की तरह छोटे बन गये। और जैसे माँ बालक को भोजन कराये, ऐसे शबरी प्यार से राम जी को फल खिलाने लगी और रामजी भी बड़े प्यार से उनको खाने लगे।

कंद मूल फल सुरस अति दिए राम कहूँ आनि। 
प्रेम सहित प्रभु खाए बारंबार बखानि। । 



Wednesday, September 10, 2014

बालों की देखभाल के लिए........... इनको अपना के देखों

  बालों की देखभाल के लिए............                  



                आपके बाल आपके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में काफी कुछ बता सकते हैं। हालांकि, आज कल के तनाव, साइज़ ज़ीरो बनने की होड़ में उस तरीके का संचालित खाना, हार्मोनल बदलाव, बालों पर कई तरह के उत्पादों का प्रयोग और कई अन्य कारणों से अपने सर पर स्वस्थ बालों को संभालना आसान बात नहीं है। 

त्वचा की तरह बालों की देखभाल के लिए क्लींजिंग, कंडीशनिंग और स्ट्रेंगथनिंग की जाती है और कुछ घरेलु देखभाल की मदद से इसे पाया जा सकता है। 

क्लींजिंग: 1. सबसे असरदार घर में बनाये जाने वाला शैम्पू रीठा, शीकाकाई और आमला का मिक्सचर है। इन सब को बराबर मात्रा में करीबन १ लीटर पानी में रात भर भिगो कर रखें। अगले दिन इस मिक्सचर को तब तक उबालें जब तक यह आधा न हो जाए। इसके बाद इसे ठंडा कर लें। 

2. अगर सर में जुएं हो गयी हों तो टी ट्री तेल काफी असरदार साबित हो सकता है। छोटे बच्चों के माँ बाप इस शैम्पू का इस्तमाल उन शैम्पू से बचने के लिए कर सकते हैं जिनमें कर्कश केमिकल का इस्तमाल होता है। इस तेल का इस्तमाल उलझे हुए बालों को सुलझाने के लिए भी किया जा सकता है। यह बालों को नमी देता है और सर को बैक्टीरिया और फंगल समस्या से निदान दिलाता है।

 कंडीशनिंग: 1. आधा कप मेयोनीज़ से बालों में मसाज करें और इसे प्लास्टिक बैग से १५ मिनट तक ढक कर रखें। शैम्पू करने से पहले बालों को धो लें। 

2. जिन लोगों के बाल रूखे हैं उन्हें सर पर गुलाबजल से मसाज करना चाहिए क्योंकि यह रूखे बालों का उपचार करने में काफी कारगर साबित होता है। ओलिव आयल और मधु को पके पपीते में मिलाकर अपने बालों में लगाएं। एक घंटे बाद बालों में शैम्पू कर लें।

 3. जिन लोगों के बाल तैलीय हैं उन्हें मुल्तानी मिटटी, आमला, रीठा और शिकाकाई के मिक्सचर का प्रयोग करना चाहिए। ४० मिनट बाद बालों में शैम्पू कर लें। 

4. पुदीने का तेल बालों की देखभाल में काफी उपयोगी साबित होता है क्योंकि यह सर को ठंडा करने में मदद करता है और सर से रुसी और जुओं को भी भगाता है। यह बालों को कंडीशन भी करता है। पुदीने का तेल तैलीय बाल को सामान्य बनाता है। यह ऑयली बालों के लिए एस्ट्रिंजेंट का काम करता है।

 5. ताज़ा मेथी के पत्तों का लेप रोज़ नहाने से पहले सर पर लगाने से बाल बढ़ते हैं, उसका रंग बरकरार रहता है, बाल सिल्की रहते हैं और रूसी से निजात मिलता है। 

स्ट्रेंगथनिंग: 1. केले में खनिज पदार्थ होता है जो बालों को बढ़ने और उसे बचाने में कारगर साबित होता है। सूखे, डाई किये और पर्म किये हुए बालों के लिए बनाना मास्क काफी मददगार साबित होता है।

 2. बालों के गिरने की समस्या से निजात पाने के लिए सलाद का जूस इस्तमाल में लाया जा सकता है।

 3. बालों के झरने की समस्या से बचने के लिए अरंडी का तेल इस्तमाल करना चाहिए। कई लोगों का मानना है कि यह खोये हुए बालों को वापस लाने में कारगर साबित होता है। 

4. लैवेंडर सर पर बालों को बढ़ने में मदद करता है, बालों में तेल के निर्माण को नियंत्रित करता है और सर पर फिर से बालों को आने में मदद करता है। दही कंडीशनर और क्लींजिंग में मदद करता है।



Tuesday, September 9, 2014

Hindi Motivational Stories......................................आशीर्वाद

आशीर्वाद  

एक जंगल में एक शिकारी जा रहा था। और उसी रस्ते में एक घोड़े पर सवार राजकुमार उस से मिला और दोनों साथ चल दिए। कुछ समय के बाद आगे उन्हें एक तपस्वी और एक साधु मिले। वे दोनों भी इनके साथ मिलकर चलने लगे। अब ये चारों ही उस जंगल से जा रहे थे। आगे उनको एक कुटिया दिखायी दी। उस में एक बूढ़े बाबा जी बैठे थे। चारों आदमी कुटिया के भीतर गये और बाबाजी को प्रणाम किया। बाबाजी उन चारों को चार आशीर्वाद दिये। पहला राजकुमार से कहा -' राजपुत्र ! चिरंजीव रहो। ' दूसरा तपस्वी से कहा - ' ऋषिपुत्र ! तुम मत जीओ। ' तीसरा साधु से कहा - ' तुम चाहे जीओ या मरो, जैसी तुम्हारी मरजी !' चौथा शिकारी से कहा -'तुम न जीओ न मरो। ' बाबाजी इस तरह आशीर्वाद देकर चुप हो गये।

अब चारों आदमियों को बाबा जी का आशीर्वाद समझ में नहीं आया। तब सब ने प्रार्थना कि कि बाबा जी कृपा करके अपने आशीर्वाद का भावर्थ समझाये। बाबा जी बोले १. -' राजा को नरक में जाना पड़ता है। मनुष्य पहले तप करता है, तप के प्रभाव से राजा बनता है और फिर मरकर नरक में जाता है। कहा गया है -"तपेश्वरी राजेश्वरी, राजेश्वरी नरकेश्वरी "  इस लिये मैंने राजकुमार को सदा जीते रहने का आशीर्वाद दिया। जीता रहेगा तो सुख पायेगा। २. तपस्या करनेवाला जीता रहेगा तो तप करके शरीर को कष्ट देता रहेगा। वह मर जायेगा तो तपस्या के प्रभाव से स्वर्ग में जायेगा या राजा बनेगा। इसलिये उसको मर जाने का आशीर्वाद दिया। जिस से वह सुख पाये। ३. साधु जीता रहेगा तो भजन-स्मरण करेगा , दुसरो का उपकार करेगा और मर जायेगा तो भगवान के धाम में जायेगा। वह जीता रहे तो भी आनन्द है, मर जाय तो भी आनन्द है। इस लिये मैंने उसको आशीर्वाद दिया कि तुम जीओ, चाहे मरो, तुम्हारी मरजी। ४. शिकारी दिन भर जीवों को मारता है। वह जीयेगा तो जीवों को मारेगा और मरेगा तो नरक में जायेगा। इस लिए मैंने कहा कि तुम न जीओ, न मरो।

मनुष्य को अपना जीवन ऐसा बनाना चाहिये कि जीते भी मौज रहे और मरने पर भी मौज रहे ! साधु बनना है, पर साधु का वेश धारण करने की जरुरत नहीं। गृहस्थ में रहते हुए भी मनुष्य साधु बन सकता है। भगवान का भजन-स्मरण करे और दूसरों की सेवा करे तो यहाँ भी आनन्द है और वहाँ भी आनन्द है। दोनों हाथों में लड्डू है।कबीर जी ने कहा है -

राजपुत्र चिरंजीव मा     जीव ऋषिपुत्रक : ।
जीव वा मर वा साधु व्याध  मा जीव मा मर : ।।

सब  जग डरपे मरण से,    मेरे मरण आनन्द। 
कब मारिये कब भेटिये,     पूरण परमानन्द।। 

Sunday, September 7, 2014

Hindi Motivational Stories....................................सन्तों की बात निराली !

सन्तों की बात निराली !

कलयुग की ये बात है जब मानव जीवन डग-मागने लगा तो कुछ सन्तों ने सोचा चलो कुछ ऐसा करे जिस से लोग जागृत हो जाये। चार साधु पूरी दुनिया में तो जा नहीं सकते थे इस लिए एक शहर से उन्होंने सुरुवात की। एक नाम चीन शहर में ये चारो साधु आये। एक साधु शहर के चौराहे में जाकर बैठ गया, एक घण्टा घर में जाकर बैठ गया, एक कचहरी में जाकर बैठ गया और एक शमशान में जाकर बैठ गया।

चौराहे में बैठे साधु से लोगोँ ने पूछा कि बाबाजी ! आप यहाँ आकर क्यों बैठे हो ? क्या और कोई बढ़िया जगह नहीं मिली ? साधु ने कहा- 'यहाँ चारो दिशाओं से लोग आते है और चारों दिशाओं में जाते है। किसी आदमी को रोको तो वह कहता है कि रुकने का समय नहीं है, जरुरी काम पर जाना है। अब यह पता नहीं लगता कि जरुरी काम किस दिशा में है ? सांसारिक कामो में भागते-भागते जीवन बीत जाता है, हाथ कुछ लगता नहीं ! न तो सांसारिक काम पुरे होते है और न भगवान का भजन ही होता है ! इस लिये हमें यह जगह बैठने के लिये बढ़िया दीखती है, जिससे सावधानी बनी रहे। '

घण्टा घर में बैठे साधु से लोगों ने पूछा कि बाबाजी ! यहाँ क्यों बैठे हो ? साधु ने कहा - ' घड़ी की सुइयाँ दिन भर घूमती है, पर बारह बजते ही हाथ जोड़ देती है कि बस, हमारे पास इतना ही समय है, अधिक कहाँ से लाये ? घण्टा बजता है तो वह बताता है कि तुम्हारी उम्र में एक घण्टा कम हो गया। जीवन का समय सीमित है। प्रतिक्षण आयु नष्ट हो रही है और मौत नजदीक आ रही है। अंतः सावधान होकर अपना समय भगवान के भजन में और दूसरों की सेवा में लगाना चाहिये। इस लिये साधु के बैठने की यह जगह हमें बढ़िया दीखती है, जिस से सावधानी बनी रहे। '

कचहरी में बैठे साधु से लोगों ने पूछा कि बाबाजी ! आप यहाँ क्यों बैठे हो ? साधु ने कहा - 'यहाँ दिनभर अपराधी आते है और पुलिस उनको डण्डे मारती है। मनुष्य पाप तो अपनी मरजी से करता है, पर दण्ड दूसरे की मरजी से भोगना पड़ता है। अगर वह पाप करे ही नहीं तो फिर दण्ड क्यों भोगना पड़े ? इस लिये साधु के बैठने की यह जगह बढ़िया दीखती है, जिस से सावधानी बनी रहे। '

शमशान में बैठे साधु से जब लोगों ने पूछा कि बाबाजी ! आप यहाँ क्यों बैठे हो ? साधु ने कहा -'शहर में कोई भी आदमी सदा नहीं रहता। सब को एक दिन यहाँ आना ही पड़ता है। यहाँ आने के बाद फिर आदमी कहीं नहीं जाता। यहाँ आकर उसकी यात्रा समाप्त हो जाती है। कोई भी आदमी यहाँ आने से बच नहीं सकता। अंतः जीवन रहते-रहते परम लाभ की (परमत्मा की प्राप्ति ) प्राप्ति कर लेनी चाहिये, जिस से फिर संसार में आकर दुःख न पाना पड़े। इसलिये मेरे को यह जगह बैठने लिये बढ़िया दीखती है, जिस से सावधानी बनी रहे। '

सीख - हम चाहे किसी भी जगह रहे किसी भी कार्य को करते रहे पर प्रभु की याद और उनका गुणगान करते रहे, उन्हें कभी न भूले। क्यों की वह हमारा गति-सद्गति दाता है।  

Saturday, September 6, 2014

Hindi Motivational Stories....................अनोखा अतिथि-सत्कार

अनोखा अतिथि-सत्कार 

    बहुत पुरानी बात है। त्रिपुरा में एक ब्राह्मण रहता था। भक्ति भाव से भरे अतिथि की सेवा को अपना धर्म मानते थे। जैसे तैसे उनकी शादी हुई। स्त्री भी स्वभाव से अच्छी थी, गुणवान और पति की आज्ञा को अपना धर्म मानने वाली थी। ब्राह्मण ने पहले दिन ही अपनी स्त्री से कह दिया कि देखो, अब मैं गृहस्थ बन गया हूँ। हमारा धर्म है अतिथि-सत्कार करना। मैं घर में राहु या न राहु कोई अतिथि आये तो भूखा मत जाने देना। ब्रम्हचारी का  गुरु- आज्ञा का पालन करना। वानप्रस्थ का तप करना और भक्ति - भजन करना। उनकी स्त्री ने कहा -"अच्छी बात है "  ब्रह्मण त्रिपुरा नगरी में घूमते फिरते भिक्षा माँगते और जो भी मिले उसे लाकर स्त्री को देते। घर की स्थिति बहुत साधारण थी। खाने के लिये अन्न भी नहीं था। भिक्षा मिले तो खाये नहीं मिले तो भूखे ही सो जाते थे।

     ईश्वर की लीला भी निराली है। एक दिन एक बूढ़ा संन्यासी आया और आवाज़ लगाया घर में कोई है ? ब्राह्मण बाहर आया। बूढ़ा संन्यासी ने कहा ," आज सोचा आपके यहाँ भोजन करू। ब्राह्मण ने कहा ,' ये तो अच्छी बात है। बहुत ही आनन्द की बात है। आओ अन्दर आओ ' कहते हुवे संन्यासी को घर में बिठाया। और देवयोग से उस दिन बाह्मण को कही से भिक्षा नहीं मिली थी। और घर में कुछ था नहीं। ब्राह्मण अपनी स्त्री से कहा घर में कुछ है। स्त्री बोली हाँ। ब्राह्मण बोला तुम्हारे माया के कुछ गहनें मिले है क्या? स्त्री बोली नहीं एक काम करो आप जल्दी दर्जी से कतरनी (कैंची) ले आऒ। ब्राह्मण गया और कतरनी ले आया। स्त्री कतरनी से अपने सिर के कुछ बाल काट दिए और उसका रस्सी बनाकर ब्राह्मण को दे दिया बोला इसे बाज़ार में बेच आओ। ब्राह्मण गया और उसे बेचकर जो पैसे मिले उसका दाल और चावल लेकर आया। स्त्री ने भोजन बनाया।

     ब्राह्मण ने महाराज से कहा रसोई तैयार है। भोजन कर ले , महाराज ने पूरा खाना खा लिए एक दाना भी नहीं छोड़ा। और कहा ब्राह्मण से ,'अब मैं तो बूढ़ा हो गया हूँ इतनी धुप में चल नहीं सकता। इसलिये आज यही रुख जाता हूँ।' ब्राह्मण बोला- ' अच्छी बात आज यही रहो  महाराज !' दुपहर का काम तो निपट गया और फिर रात के लिए क्या करे ? ये सवाल ब्राह्मण के मन में आया। श्याम हुई ब्राह्मण स्त्री से पूछा अब क्या करे स्त्री ने फिर से अपने बचे हूवे बाल भी काट कर उसका रस्सी बनाया और ब्राह्मण को दिया और ब्राह्मण फिर से उसे बेच कर कुछ दाल चावल लेकर आया। महाराज ने ब्राह्मण से कहा ,'रात में सिर्फ दाल चावल मिल जाय तो बहुत है और कुछ नहीं चाहिये।' ब्राह्मण ने कहा 'जी महाराज !' रात में महाराज भोजन करने बैठे महाराज को भोजन केले के पत्ते से दिया गया। महाराज थोड़ा और थोड़ा और करते करते सारा खाना खत्म कर दिया एक दाना भी नहीं छोड़ा। और कहा -'आज मैं तृप्त हो गया हूँ।' ....

      रात बहुत हो गयी थी। महाराज ने कहा अब मैं कहाँ जाऊ आज रात यही ठहर जाता हूँ। ब्राह्मण बोला हां महाराज!  चटाई एक ही थी। उसे महाराज के लिए बिछा दिया , महाराज उस पर विराजमान हो गये आराम से सो गये। ब्राह्मण और स्त्री दोनों भूखे ही थे और खाना कुछ बचा भी नहीं था जो खाए।  ब्राह्मण महाराज के पास बैठकर उनके पैर दबाने लगे और स्त्री दूसरी तरफ बैठी थी थोड़ी देर में महाराज सो गये। और फिर ब्राह्मण भी सो गया महाराज के पैरो की तरफ और स्त्री सो गयी सिर के पास। महाराज मध्य रात्री को जग गये दोनों को बहुत आशीर्वाद दिया और कहा तुम्हरे सिर के बाल आ जाये कपडे नए हो , घर अच्छा हो। … आपके यहाँ अतिथि-सत्कार खूब हो आनन्द मंगल हो। … ये कहकर महाराज अंतर्दृश्य हो गए। . . सच बात तो ये था, महाराज के रूप में खुद भगवान उनके यहाँ  आये थे।

       सुबह ब्राह्मण ने देखा महाराज नहीं है तो यहाँ वहाँ उन्हें खोजने लगे। स्त्री भी जग गयी तो देखा उसके बाल वैसे के वैसे है। कपडे नये है घर सुन्दर बन गया है। ब्राह्मण स्त्री से पूछने लगा महाराज बूढ़े थे कैसे गये होंगे कहाँ गये होंगे कुछ पता है ? स्त्री बोली आप अपने आप को देखो घर को देखो।  वे महाराज नहीं स्वम् भगवान हमारे यहाँ पधार कर आशीर्वाद देकर अदृश्य हो गये है। ब्राह्मण रोने लगा आप आये हमने आप का सत्कार उतना नहीं कर पाये जितना करना चाहिये था। हम अनजान थे महाराज ! हमें क्षमा करो प्रभु !! इसी बीच उन्हें एक आवाज़ सुनायी दिया। " हे ब्राह्मण तुम्हारी सेवा से मैं प्रसन्न हूँ अब तुम इसी तरह अतिथि -सेवा करना सेवा करते करते तुम मेरे धाम आ जाएंगे । "

सीख - भारत में अतिथि-सत्कार को पुण्य कर्म कहा गया है। जिसका फल अनेक जन्म तक मिलता है। इसलिये अतिथि-देवो भव कहा गया है।

Friday, September 5, 2014

Hindi Motivational Stories.............. ...........वहम

वहम 

            मुकुन्दस नाम का  एक व्यक्ति एक अच्छे सन्त के शिष्य थे। और सन्त जब भी मुकुन्दस को अपने पास आने के लिए कहते, वह यही कहता कि मेरे बिना मेरे स्त्री-पुत्र रह नहीं सकेंगे। वे सब मेरे ही सहारे बैठे हुए है। मेरे बिना उनका निर्वाह कैसे होगा ? सन्त कहते कि भाई ! यह तुम्हारा वहम है, ऐसी बात है नहीं। एक दिन सन्त ने मुकुन्दस से कहा तुम परीक्षा करके देख लो। मुकुन्दस परीक्षा के लिए मान गया। सन्त ने उसको प्राणायम के कुछ श्वास रोकने वाले विधि बताये और उन्हें सिखा भी दिया।

       एक दिन मुकुन्दस अपने परिवार के साथ नदी में नहाने के लिए गया। नहाते समय उसने डुबकी लगाकर अपना श्वास रोक लिया और नदी के भीतर-ही भीतर दूर जंगल में चला गया और बाहर निकलकर सन्त के पास पहुँच गया। और सन्त ने ये बात किसी को नहीं बतायी। परीक्षा चल रही थी। इधर परिवार वालों ने नदी के भीतर उसकी बड़ी खोज की। वह नहीं मिला तो उनको विश्वास हो गया कि वह तो नदी में बह गया। सब जगह बड़ा हल्ला हुआ कि अमुक व्यक्ति डूबकर मर गया ! और गाँव के कुछ लोग और सत्संगियों ने आपस में विचार किया कि मुकुन्दस तो बेचारा मर गया, अब हमें ही उनके स्त्री और पुत्र का निर्वाह का प्रबन्ध करना चाहिये। सब ने अपनी-अपनी तरफ से सहायता देने की बात कही। किसी ने आटे का प्रबन्ध अपने जिम्मे लिया, तो किसी ने चावल का.……आदि -आदि। और धर्मशाला में रहने के लिए एक कमरा देकर उनकी हर जरुरत की वस्तु समय से पहले उन्हें मिलने लगा। इस प्रकार सन्त से पूछे बिना उनके सत्संगियों ने सब प्रबन्ध कर दिया।

            थोड़े दिनों के बाद मुकुन्दस की स्त्री सन्त के पास गयी। सन्त ने घर का समाचार पूछा कि कोई तकलीफ तो नहीं है ? स्त्री बोली कि जो व्यक्ति चला गया, उसकी पूर्ति तो हो नहीं सकती, पर हमारा जीवन-निर्वाह पहले से भी अच्छा हो रहा है। सन्त ने पूछा ,-पहले से भी अच्छा कैसे ? स्त्री ने कहा ,' आपकी कृपा से सत्संगियों ने सब आवश्यक सामान रखवा दिया है। जब किसी वस्तु की जरुरत पड़ती है , मिल जाती है। ' मुकुन्दस छिपकर उनकी बातें सुन रहा था।

       कुछ समय बीत गया तो सन्त ने मुकुन्दस से कहा कि तू अब घर जाकर देख। वह रात के समय अपने घर गया और बाहर से किवाड़ खटखटाया। स्त्री ने पूछा -' कौन है ?' मुकुन्दस ने कहा -'मैं हूँ, किवाड़ खोल। ' आवाज़ सुनकर स्त्री डर गयी कि वे तो मर गये, उनका भुत आ गया होगा ! स्त्री बोली - ' मैं किवाड़ नहीं खोलती ' मुकुन्दस बोला - ' अरे, मैं मरा नहीं हूँ ;किवाड़ खोल। ' स्त्री बोली - ; बच्चा देख लेगा तो डर के मारे उसका प्राण निकल जायेगा, आप चले जाओ। ' मुकुन्दस जी बोला - ' अरे, मेरे बिना तुम्हारा काम कैसे चलेगा ?' स्त्री बोली - ' सन्तों की कृपा से पहले से भी बढ़िया काम चल रहा है, आप चिन्ता मत करो। आप कृपा करके यहाँ से चले जाओ। ' मुकुन्दस बोला - ' तुम्हारे को कोई दुःख तो नहीं है ?' स्त्री बोली - 'दुःख यही है कि आप आ गये ! आप न आये तो कोई दुःख नहीं होगा ! आप आओ मत - यही कृपा करो !'

सीख -  इस सृस्टि के रचयता परमात्मा है वही पालनहार है। इस लिए उस पर भरोसा कर साक्षी हो इस संसार में रहना है। काम करड़े दिल यार डे। होकर रहना है। किसी के रहने या नहीं रहने से कोई काम कभी रुकता नहीं है।  ये ड्रामा है जो चलता ही रहता है। 

Wednesday, September 3, 2014

Hindi Motivational Stories.................ससुराल की रीत

ससुराल की रीत 

   एक गाँव में एक लड़की विवाह करके ससुराल में आयी। घर में एक उनका पति , एक सास और एक दादी सास थी। कुछ ही दिन हुवे उसे आये लेकिन घर के अन्दर क्या चल रहा है, ये उसे पता चला। उसने देखा सास अपनी दादी सास के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती है। दादी सास वृद्ध होने के कारन किसी को कुछ नहीं कहती जो मिलता खा लेती जहा बिठा दिया वहाँ बैठ जाती थी। सास उन्हें खाना भी बचा हुवा देती थी। और कभी कभी तो सास दादी सास पर बिना कारण भरस पड़ती , और तो और कभी मार भी देती थी।

              लड़की को बड़ा बुरा लगा ये सब देखकर और दया भी आयी, उसने सोचा एक दिन अगर वह सास को कुछ बोले तो सास कहेंगी कल की छोकरी मुझे उपदेश देती है। इस लिए लड़की ने युक्ति से काम लिया और लड़की सब काम काज करके दादी सास के पास बैठ जाती। दो दिनों के बाद सास ने देखा रोज ये लड़की दादी सास के पास क्यों बैठती है ? सास ने आवाज़ दिया, ' बहु वहाँ क्यों जाकर बैठती है ' लड़की ने कहा ,' काम बतावो ' सास ने कहा काम क्या बताना मैं पूछ रही हूँ वहाँ क्यों बैठती है घर में और भी जगह है। तो लड़की बोली ,'मेरे पिताजी ने कहा है जवान लड़की को घर में बड़े बूढो के पास बैठना है जवान लड़कों या लड़कियों के साथ कभी नहीं ' बड़े बूढो के साथ बैठने से रीति रिवाज़ का पता पड़ेगा।  हर गॉव की रीति रिवाज़ अलग होते है। तुम्हे वहाँ के रीति रिवाज़ के अनुसार चलना होगा। मैं यहाँ का रीति रिवाज सीखने के लिए दादी के पास बैठी हूँ। सास ने कहा क्या सीखा , लड़की ने कहा - मैंने जब दादी से पूछा आपकी बहु आपकी कैसी सेवा करती है ? दादी ने कहा - कि यह मेरे को ठोकर नहीं मारे, गाली नहीं दे तो मैं सेवा ही मानु।' ये बात सुनकर सास कहा ,'क्या तू भी ऐसा ही करेंगी ?' लड़की ने कहा ,' मैं ऐसा नहीं कहती हूँ ,मेरे पिताजी ने कहा है कि बड़ो से ससुराल की रीति सीखना । '

     सास डरने लगी और सोच चला ,'कि मैं अपनी सास के साथ जो बर्ताव करती हूँ। कहीं ये लड़की आगे मेरे साथ तो नहीं करेंगी ?… और उसी सास की नज़र कोने में रखे ठीकरी ( पत्तों से बनाया हुआ प्लेट ) पर पड़ी ! तब सास ने पूछा ये ठीकरीया यहाँ क्यों रखी है ? लड़की ने कहा आप दादी को ठीकरी में खाना देते हो इसलिए मैंने उन्हें पहले से जमा कर रख दिया है।

सास - तो मुझे ठीकरी में भोजन करायेगी क्या ?
लड़की - पिताजी ने कहा है तेरे वहाँ के रीति रिवाज के अनुसार चलना।
सास - यह रीति थोड़े ही है। (नाराज होकर बोली )
लड़की - तो फिर आप दादी को ठीकरी में भोजन क्यों देती हो ?
सास - थाली कौन माँजे ?
लड़की - थाली तो मैं माँज दूँगी !
सास - तो तू थाली में दिया कर, अब ये ठीकरी उठाकर बाहर फ़ेंक।
     
      इस तरह बूढ़ी दादी को ताजा खाना थाली में मिलने लगा। रसोई बनते ही वह लड़की दादी माँ को दे देती।  दादी दिनभर एक खटिया में पड़ी रहती। एक दिन लड़की उस खटिया को देखने लगी। सास ने पूछा ,- 'क्या देख रही हो ?' लड़की ने कहा ,'देख रही हूँ बड़ो को कैसी खटिया देनी चाहिये ' सास ने कहा ,' वो खटिया तो टूटा हुआ है ' लड़की बोली, ' तो दूसरी खटिया क्यों नहीं देते। ' सास ने कहा ,' तू लगा दे दूसरी खटिया ' लड़की ने कहा आप आज्ञा दे तो मैं दूसरी खाट बिछा दूँ।

   इस तरह दादी की सारी चीजें बदल गयी। खाना, कपड़ा, चादर, बिछोना आदि। .... दादी लड़की को मन ही मन आशिर्वाद देने लगी। लड़की की चतुराई से बूढी माँ जी का जीवन सुधर गया !

सीख - लड़की अगर सास को कोरा उपदेश देती तो क्या वह उसकी बात मान लेती ? बातों का असर नहीं पड़ता, आचरण का असर पड़ता है। इस लिए लड़कियों को चाहिये कि ऐसी बुद्धिमनी से सेवा करें और सब को राजी रखें। 

Monday, September 1, 2014

Hindi Motivational Stories...................जब साधु राजा बना

जब साधु राजा बना


                 एक साधु गॉव से निकल कर शहर की तरफ जा रहा था चलते-चलते उसे बहुत देर हो गया शहर के पास पहुँचा तो शहर का दरवाजा बन्द हो गया था। रात ज्यादा हो गया था। साधु शहर के दरवाजे के बाहर  ही सो गया। और दैवयोग ऐसा था की उसी दिन उस राज्य का राजा का देह शान्त हो गया था उसे कोई संतान नहीं था। और राज्य के लोभ में परिवार और रिश्तेदार लड़ते रहे कोई कहता ये मेरे हक्क का है कोई कहता मेरा भी हक्का है।  अंत में एक निर्णय लिया गया की कल सुबह जो भी व्यक्ति पहले इस शहर में प्रवेश करेगा उसे ही इस राज्य का राजा बना दिया जायेगा। इस निर्णय से विवाद मिट गया।

         दूसरे दिन शहर का दरवाजा खुलते ही साधु अन्दर प्रवेश किया। बस फिर क्या था एक हाथी वह आया और साधु की गले में फूल माला डाल दिया। ये देखकर साधु आश्चर्य चकित हो गया वो समझ नहीं पा रहा था क्या हो रहा है। और तब कुछ सज्जन आये और साधु को सारी बात बता दी और फिर साधु को हाथी पर बिठाकर पुरे शहर में परिक्रमा करा दिया गया। और फिर उन्हें राज्य का राजा घोषित किया गया। साधु ने कहा ठीक है। लेकिन मुझे एक सन्दुक चाहिए। आज्ञा के अनुसार सन्दुक लाया गया। साधु ने अपने पोशाक, कमण्डल  सब उस सन्दुक में रख दिया और राजा का पोशाक पहनकर उस राज्य का राजा बन गया। और साधु भगवान का कार्य समझ राज्य का कार्य करने लगे।

       साधु को कोई लोभ नहीं था इस लिए राज्य का जो भी पैसा था उसे राज्य के विकास के लिए उपयोग किया और राज्य में काफ़ी सुधार होने लगा पहले से ज्यादा बढ़िया रीति से राज्य चलने लगा। फलस्वरूप राज्य की बहुत उन्नति हो गयी। आमदनी बहुत ज्यादा हो गयी। राज्य का खजाना भर गया। प्रजा सुखी हो गयी। राज्य की समृद्धि को देखकर पड़ोस के एक राजा ने विचार किया कि साधु राज्य तो करना जानते है, पर लड़ाई करना नहीं जानते ! इस लिए  उसने चढाई कर दी।

         राज्य के सैनिकों ने साधु को समाचार दिया की अमुक राजा ने चढाई कर दी है। साधु ने कहा करने दो हमें लड़ाई नहीं करनी है। थोड़ी देर में समाचार आया कि शत्रु की सेना नजदीक आ रही है। साधु बोले आने दो। और फिर समाचार मिला कि शत्रु की सेना पास में आ गयी है तो साधु ने आदमी भेजा और उस राजा को भुला लिया। साधु ने पूछा आप यहाँ किस मनसा से आये है राजन ! पडोसी राजा ने कहा राज्य लेने आये है ? साधु ने कहा राज्य लेने के लिए लड़ाई की जरुरत नहीं है। फिर एक सेवक को साधु ने कहा मेरा सन्दुक लाओ। सन्दुक आते ही साधु ने उसे खोला और पोशाक बदल कर हाथ में कमण्डल पकड़ लिए और कहा - " राजन इतने दिनों से मैंने इस राज्य की रोटी खायी, अब आप खाओ ! मैं तो इस लिए बैठा था की राज्य सम्भालनेवाला कोई नहीं था। अब आप आये हो तो संभालो व्यर्थ में मनुष्यों को क्यों मारे। "

सीख - इस कहानी का तात्पर्य यह नहीं की शत्रु की सेना आये तो उसको राज्य दे दो , लेकिन साधु की तरह जो काम सामने आ जाय , उसको भगवान का काम समझ कर निष्काम भाव से बढ़िया रीति से करो , अपना कोई आग्रह मत रखो।