Tuesday, July 8, 2014

Hindi Motivational stories.......... ............महान शंकर की ईमानदारी

महान शंकर की ईमानदारी

      महान शंकर का जन्म सीलोन में हुआ था। सीलोन का पुराना नाम सिंहलदीप है। इसे लंका भी कहा जाता है। महान शंकर एक आदर्श पुरुष हो गये है। उनका बचपन बड़ी दरिद्रता में बिता था। उनके पिता दिवाकर बहुत कम पढ़े-लिखे थे। जंगली जड़ी-बूटियाँ बेचकर वे अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। अपने पुत्र शंकर को उन्होंने थोड़ी-बहुत शिक्षा दी और वैधक भी सिखाया।

   कुछ दिनों  के बाद सीलोन में अकाल आया और उस समय दिवाकर की मृत्यु हो गयी। उस समय शंकर मात्र 18 साल के थे। अब दिवाकर के मृत्यु के बाद सारा परिवार का बोज शंकर पर आ गया। एक तो वे लडके थे, दूसरा उनके गाँव में दूसरे भी कई अच्छे वैध थे। और वे शंकर से द्धेष रखते थे और रोगियों को भड़काया करते थे। कि  'शंकर को वैध का कुछ भी ज्ञान नहीं है। वह तो रोगियों की बीमारी बढ़ा देता है। ' इन सब कारणों से शंकर को वैध से जो दो-चार आने मिलते भी थे, वे भी बंद हो गए। उनको और उनके परिवार को कई बार केवल पानी पीकर रहना पड़ता था। उसकी माता दूसरों का अन्न पीसती थी और उनकी बहिन फूलों की माला बनाती थी, जिसे वे बेच आते थे। इस प्रकार वह परिवार बड़े कष्ट में जीवन बिता रहा था।

    अचानक एक दिन सिंहलदीप के एक प्रसिद्ध धनी का पत्र शंकर को मिला। उस धनी का नाम लोरेटो बेंजामिन था। शंकर के पिता दिवाकर लोरोटो के पारिवारिक चिकिस्तक थे। लोरोटो बीमार था और उसने शंकर को अपनी चिकित्सा करने के लिये बुलाया था। पत्र पाकर शंकर लोरोटो के गाँव गये और उसकी चिकित्सा करने के लिये वहीं ठहर गए। लोरोटो का एक बड़ा बगीचा था। किसी समय वह बगीचा बहुत सुन्दर रहा होगा, किन्तु उन दिनों तो उसके बीच के मकान खंडहर हो गये थे। बगीचे में घास और जंगली झाड़ियों उग गयी थी। उस में कोई आता-जाता नहीं था। शंकर जड़ी-बूटी ढूंढने उस बगीचे में प्राय; जाने लगे।

    एक दिन शंकर जड़ी-बूटी ढूंढते उस बगीचे में घूम रहा था। घूमते समय एक जगह उसका पैर धँस गया। और उसने देखा की एक ताँबे का हंडा जमीन में गड़ा है। शंकर ने मेहनत कर उस स्थान की मिट्टी हटाई तो बहुत से हंडे दिखाई पड़े। बहुत मेहनत और मुश्किल से एक हंडे के मुख से ऊपर का ढक्कन हटा सका। और जैसे उसने अन्दर देखा तो उसका आश्चर्य का ठिकाना न रहा। हंडा सोने और अशर्फियों से भरा था।

      शंकर बड़े दरिद्र थे। उनके सारे परिवार को उपवास करने पड़ते थे।और उनके सामने सोने हीरो से भरे हंडे थे। लेकिन फिर भी शंकर के मन में लोभ नहीं था। वो सोचा ' बेचारा लोरोटो धन की चिन्ता के कारण ही रोगी बना है उस पर कर्ज  हो गया था। अब वह स्वस्थ हो जाएगा। ' वह तुरंत लोरोटो के पास आकर सारी बात बता दी और दोनों मिलकर हंडे लोरोटो के घर में सुरक्षित रखा दिये। तब लोरोटो ने शंकर को 200 सोने के सिक्खे और 500 रुपये देना चाहा। पर शंकर ने कहा - "मैं आपका धन नहीं लूंगा। मैंने आपके ऊपर कोई उपकार नहीं किया है। मैंने तो एक साधारण कर्तव्य का पालन किया है। "

   लोरोटो पर शंकर की ईमानदारी और सद्व्यवहार का बड़ा प्रभाव पड़ा। आगे चलकर उसने अपनी इकलौती पुत्री का विवाह शंकर के साथ कर दिया। एक धनी की एक मात्र कन्या से विवाह करके भी शंकर ने उनका धन नहीं लिया। शंकर खुद परिश्रम करके ही अपना काम चलाया। अपने परिश्रम तथा उदारता से वे सीलोन में बहुत प्रसिद्ध और संपन्न हो गये थे।

सीख - सच्चे और ईमानदार व्यक्ति की हमेशा जीत होती है। 

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