Tuesday, July 1, 2014

Hindi Motivational Stories........................पन्ना धायका त्याग

पन्ना धायका त्याग 

 
     चित्तौड़ के महाराणा संग्राम सिंह की वीरता प्रसिद्ध है। उनके स्वर्गवासी होने पर चित्तौड़ की ग़द्दी पर राणा विक्रमादित्य बैठे, किन्तु वे शासन करने की योग्यता नहीं रखते थे। उन में न बुद्धि थी और न वीरता। इस लिए चित्तौड़ के सामन्तो और मंत्रियों ने सलाह करके उनको गद्दी से उत्तार दिया तथा महाराणा संग्राम सिंह के छोटे कुमार उदय सिंह को गद्दी पर बैठाया।

    उदय सिंह की अवस्था उस समय केवल छ: वर्ष की थी। उनकी माता रानी करुणावती का स्वर्गवास हो चूका था। पन्ना नाम की एक धाय उनका पालन-पोषण करती थी। और उस समय राज्य का संचालन दासी-पुत्र बनवीर करता था। वह उदय सिंह का संरक्षक बनाया गया था।

    बनवीर के मन में राज्य का लोभ आया। उसने सोचा कि यदि विक्रमादित्य और उदय सिंह को मार दिया जाय तो सदा के लिए वह राजा बन सकेगा। सेना और राज्य का संचालन उसके हाथ में था ही। एक दिन रात में बनवीर नंगी तलवार लेकर राजभवन में गया और उसने सोते हुए राजकुमार विक्रमादित्य का सिर काट लिया। और जूठी पत्तल उठानेवाले एक बारी ने बनवीर को विक्रमादित्य की हत्या करते देख लिया। वह ईमानदार और स्वामिभक्त बारी बड़ी शीघ्रता से पन्ना के पास आया और उसने कहा - ' बनवीर राणा उदय सिंह की हत्या करने शीघ्र ही यहाँ आयेगा। कोई उपाय करके बालक राणा के प्राण बचाओ। '

 पन्ना धाय अकेली बनवीर को कैसे रोक सकती थी। उसके पास कोई उपाय सोचने का समय भी नहीं था। लेकिन उसने एक उपाय सोच लिया। उदय सिंह उस समय सो रहे थे। उनको उठाकर पन्ना ने एक टोकरी में रखा दिया और टोकरी पत्तल से ढककर उस बारी को देकर कहा - ' इसे लेकर तुम यहाँ से चले जाओ। और वीरा नदी के किनारे मेरा रास्ता देखना। ' उदय सिंह को तो वह से हटा दिया पर इस से भी काम पूरा नहीं हुआ। अगर बनवीर को पता लगा कि उदय सिंह को छिपाकर कहीं भेजा गया है। तो अवश्य ही घुड़सवार भेजकर पकड़ लेगा। अब पन्ना ने एक और उपाय सोचा। उसका भी एक पुत्र था। उसका पुत्र चन्दन की अवस्था भी छ: वर्ष की थी। उसने अपने पुत्र को उदय सिंह के पलंग पर सुलाकर रेशमी चदर उढ़ा दी और स्वयं एक ओर बैठ गयी। जब बनवीर रक्त में सनी तलवार लिये वहाँ आया और पूछने लगा - '  उदय सिंह कहाँ है ?' तब पन्ना ने बिना एक शब्द बोले अँगुली से अपने सोते लड़के की ओर संकेत कर दिया। हत्यारे बनवीर ने उसके निरपराध बालक के तलवार द्दारा दो टुकड़े कर दिये और वहाँ से चला गया।

   अपने स्वामी की रक्षा के लिये अपने पुत्र का बलिदान करके बेचारी पन्ना रो भी नहीं सकती थी। उसे झटपट वहाँ से नदी किनारे जाना था, जहाँ बारी उदय सिंह को लिये उसका रास्ता देख रहा था। पन्ना ने अपने पुत्र की लाश ले जाकर नदी में डाल दी और उदय सिंह को लेकर मेवाड़ से चली गयी। उसे अनेक स्थानों पर भटकना पड़ा। अन्त में देवरा के सामन्त आकाशाह ने उसे अपने यहाँ आश्रय दिया।

      और आखिर में बनवीर को अपने पाप का दण्ड मिला। बड़े होने पर राणा उदय सिंह चित्तौड़ की गद्दी पर बैठे। पन्ना धाय उस समय जीवित थी। राणा उदय सिंह माता के समान उसका सम्मान करते थे।

सीख - पन्ना की स्वामी भक्ति महान है। स्वामी के लिये अपने पुत्र का बलिदान करने वाली पन्ना माई धन्य है !................  इस धरती पर ऐसे ऐसे महान व्यक्ति हुए है। चाहे पद छोटा हो या बड़ा लेकिन व्यक्ति महान बनता है अपने गुणों से। इस लिये पन्ना धाय को सन्सार के लोग भाले भूल जाय लेकिन इतिहास में उनका नाम हमेशा अमर रहेगा।
 

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