Wednesday, June 4, 2014

Hindi Motivational Stories............. अपकारी पर भी उपकार करें

अपकारी पर भी उपकार करें


      बहुत बार ऐसा ही होता है कि हम अपराधी को अपराध का सजा देना ही अपना फ़र्ज़ समझते है। और कहानी का टाइटल कुछ  कहता है। एक बार की बात है महाराज रणजीतसिंह कहीं जा रहे थे। साथ ही बहुत से अमीर-उमराव व अंग-रक्षक थे। इतने बड़े काफिले के होते हुए भी अचानक एक पत्थर महाराज के सिर पर आकर लगा। उनका सिर फट गया और वे लहू-लुहान हो गये। इस अप्रत्यक्ष घटना से चारों तरफ अफरा-तफरी मच गयी। तुरंत पत्थर मारने वाले को ढूंढने के लिए सैनिक इधर-उधर घोड़े दौड़ाने लगे।

   थोड़ी देर में दो सिपाही एक मरियल से बूढ़े और एक पतले-दुबले लड़के को पकड़कर महाराज के सामने लाये। बूढ़ा भय से थर थर काँप रहा था। बड़ी कठिनाई से वह कह पाया - मैं बे कसूर हुँ महाराज मैं तो अपने बच्चे की भूख मिटाने के लिए कुछ तोड़ना चाहता था। महाराज ने बूढ़े को सांत्वना दी - घबराओ मत बाबा। अपनी बात आराम से कहो।

   महाराज, यदि पत्थर आम की डाली को लग जाता तो मैं आम पा जाता, पर पत्थर आम को न लग कर आपको लग गया, मैं अपने किये की क्षमा चाहता हूँ। बाबा, यदि तुम्हारा पत्थर आम को लगता तो तुम्हे और तुम्हारे बच्चे को आम खाने को मिल जाता न ? हाँ महाराज ! बूढ़े ने काँपते आवाज में कहा। किन्तु अब तो तुम्हारा पत्थर महाराज रणजीतसिंह को लगा है, और वह वृक्ष से गया- गुजरा नहीं है। तुम्हे और तुम्हारे बेटे को स्वादिष्ट भोजन, फल और मिष्ठान खाने को मिलेंगा। बूढ़ा भौचक ! अमीर-उमराव सन्न ! अंगरक्षक हैरान ! किन्तु महाराज के मुख पर मधुर मुस्कान खिल रही थी। महाराज ने आज्ञा दी - इस बूढ़े को साल भर खाने-पीने योग्य अन्न दिया जाये और पाँच हजार रूपया नगद !यह दूसरा आश्चर्य था।

   एक अमीर ने पूछ ही लिया -  यह आप क्या कर रहे हो, महाराज ! अपराधी को सजा की बजाय पुरुस्कार दे रहे हो ? रंजीत सिंह ने शांत भाव कहा - अरे भाई, जब निर्जीव पेड़ पत्थर की मार सह कर भी लोगों को मीठा फल देता है फिर हम तो चैतन्य इन्सान है, जीवमंडल के सर्वच्चा प्राणी है ,हमें चाहे लोग जाने-अनजाने लाख भला-बुरा कहें, चोट पहुंचाये, हमारा मार्ग में बाधा उत्पन्न करें लेकिन हमें सबका कल्याण करना चाहिए, सबको सुख देना चाहिए। मित्र, महान बनना है तो वृक्ष से कुछ सीखो।

सीख - इस कहानी से हमें सीख मिलता है की जब प्राकृति नेचर हम को सदा दे रहा है चाहे हम उसे पत्थर मरे या तोड़े वह सिर्फ देता ही है। हर तरह से देता ही है तो हमें भी दाता बनना है सब को सुख देना है। 

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