Sunday, June 1, 2014

Hindi Motivational Stories........ सच्चे दिल से प्रभु समर्पण हो

सच्चे दिल से प्रभु समर्पण हो 

     एक बार एक लकड़हारा अपनी प्यास बुझाने के लिए कुए में झाँका तो वह आश्चर्य नज़रों से कुए में देखता ही रह गया। वह अपनी प्यास भी भूलकर आश्चर्यचकित हो गया, उसने देखा - एक सन्यासी जंजीरों के सहारे कुए में उल्टा लटका हुआ है। उसने लोहे की मज़बूत जंजीरो से अपने पैरोँ को बाँधा हुआ है। श्राप के भय से भयभीत होते भी लकड़हारे  सन्यासी से पूछने का साहस किया। 

 लकड़हारा -  महात्मन ! आप क्या कर रहे है ? 
 संन्यासी   - बेटा, भगवान से मिलने के लिए कठोर तप कर रहा हूँ। मुझ से प्रसन्न होकर एक दिन भगवान अवश्य ही दर्शन देंगे।
लकड़हारा  -  क्या ऐसा करने से भगवान प्रसन्न हो जायेंगे ?
संन्यासी  -  हाँ, जब अपने भक्त  अधिक पीड़ामय देखेंगे तो भगवान से सहन नहीं होगा और वे दौड़े चले                           आयेंगे।
       लकड़हार पानी पीना भूल गया और उसने सोचा की मैं  भी ऐसा करूँगा। उसने घास की रस्सी बनायीं और उस कुआ पर एक लकड़ी रख कर उसमें रस्सी बाँध कर वह लटकने लगा। परन्तु ज्युँ ही वह लटका, रस्सी उसका बोझ झेल न सकी और टूट गयी। उसकी आँखे बंद हो गयी परन्तु अगले ही क्षण अपने आपको भगवान की बाँहो में पाया। अब उसकी ख़ुशी का पारावार नहीं था। उसी क्षण भगवान ने उस सन्यासी को भी दर्शन दिये। 

          संन्यासी ने प्रभु से प्रश्न किया ? मैं इतने दिन से तपस्या कर रहा हूँ।  मुझे अपने बहुत दिन बाद दर्शन दिये और इस लकड़हारे को अभी-अभी आपने अपनी बाहों में थाम लिया। 

               प्रभु मुस्कुराए, बोले - भक्त, तुम पुरे इन्तजाम से कुए में लटके थे। ताकि तुम गिर न सको। परन्तु यह लकड़हारा पूर्णत: मुझ पर समर्पण हो चुंका था। उसने यह सोचा ही नहीं कि मेरा क्या होगा। इस लिए उसकी भक्ति श्रेष्ठ है। तुम में अपनेपन का मान था, वह सर्वस्व न्यौछावर कर चूका था। 

सीख - समर्पण प्रयोजन से नहीं दक से दिल से हो तो समर्पण स्वीकार होता है ईश्वर को इस लिये सच्चा दिल 
 ईश्वर पर बलिहार जाने से ईश्वर का दर्शन होता है।

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