Monday, May 19, 2014

Hindi Motivational Stories ........................अशान्ति का कारण अहंकार

" अशान्ति का कारण अहंकार "

       मुम्बई में एक सेठ रहते थे जिनका नाम था सोमनाथ। उन्हें भक्ति और पूजा में विशेष रुचि थी। वे समय - समय पर किसी - न - किसी साधु - संत को अतिथि  के रूप में बुलाया करते और उनकी सेवा करते। उनके पास  धन सम्पत्ति होने के बाद भी वे बहुत अशान्त रहते थे। एक बार सेठ जी के ही निमन्त्रण पर एक सन्यासी उनके यह आकर ठहरे हुए थे। सेठ जी ने सन्यासी जी को बताया कि उनके जीवन में अशान्ति है।

         दोपहर भोजन के बाद सन्यासी और सेठ एक साथ बैठे कुछ बातें की उसके बाद सेठ ने सन्यासी जी को कहा चलिये मैं आपको अपने बंगले के विभिन्न भाग दिखता हूँ। बंगला देखने के बाद सेठ जी सन्यासी को बगीचे में ले गए। जहाँ रंग-बिरंगे फूलों की शोभा देखने- जैसी थी। और सेठ जी, अँगुली के इशारे से सन्यासी जी को बता रहे थे - इस फल का पौधा मैंने सिंगापुर से मँगाया था, वह सामने जो पेड़ है, उसकी कलम ऑस्ट्रेलिया से मंगायी गयी थी। और वह जो फूल दिखायी दे रहा है, वह जापान से लाया गया था.…

        और वो देखो वो मेरी ही फैक्टरी है जहाँ तीन हज़ार लोग काम करते है। और एक फैक्टरी का काम चल रहा है.। मेरे पास चार मोटर कार है। इस तरह सेठ अपनी सम्पत्ति के बारे में बताते जा रहे थे। और सन्यासी केवल …" हूँ , हूँ , हूँ  " ही करते रहे।

         जब वे वापस अपनी बैठक में लौटे तो सामने एक विश्व का नक्शा लटक रहा था दीवार पर। सन्यासी महोदय ने सेठ जी से कहा - नक़्शे की तरफ इशारा करते हुए , सेठ जी, इस में भारत देश को कहा दिखाया है ?सेठ जी ने भारत देश पर अँगुली रख दी। सन्यासी जी ने फिर पूछा - सेठ जी, इस में मुम्बई को कहाँ दिखाया है ? सेठ जी फिर अँगुली रख दी। उसमें तो मुम्बई को एक बिन्दु के ही रूप में दिखाया गया था। तब सन्यासी ने कहा सेठ जी इस में आपका बँगला और कारखाना कहाँ दिखाया है ? यह सुनकर सेठ जी को लज्जा का अनुभव हुआ क्यों कि जब मुम्बई को ही नक़्शे में बिन्दु - सम दिखाया है तो इतने बड़े विश्व में सेठ जी के बंगले और कारखाने को कैसे दिखाया जा सकता था।

         सेठ जी समझ गये कि सन्यासी जी ने उसके अभिमान को दूर करने के लिए ही यह सब पूछा है। फिर सन्यासी ने समझाया की शान्ति का अनुभव करने के लिये अभिमान और अंहकार को छोड़ना होगा। क्यों की अशान्ति का मुख्य कारण ही अहंकार है। सच्ची शान्ति ईश्वर की याद और उसकी महीमा में है। जो शास्वत सत्य है। सेठ जी को सारी बात समझ में आयी और वे ईश्वर की अराधना में रहने लगे।

सीख - हमारे पास चाहे कुछ भी हो लेकिन उसका अभिमान न हो क्यों की ये संसार ईश्वर की सुन्दर रचना है। हम भी उसकी रचना है। रचना से बड़ा रचने वाला है फिर अभिमान क्यों ?


No comments:

Post a Comment