Monday, May 19, 2014

Hindi Motivational stories - शालिग्राम और शिव

शालिग्राम और शिव

       बहुत पुरानी बात है बहुत समय पहले की बात है, कुरक्षेत्र में शालिग्राम नाम का एक बालक रहता था। और हुआ ऐसा की बचपन में ही उनके पिता शिवानन्द चल बसे। शिवानन्द बड़े सज्जन पुरुष थे। लेकिन बालक शालिग्राम को उनका सहयोग नहीं मिल पाया।

              और शालिग्राम की माँ की केवल एक ही आशा थी की शालिग्राम अपने बाप जैसा गुणवान बने। इस लिए वह हर तरह शालिग्राम का ध्यान रखती उसका इंतज़ार करती रहती। लेकिन शालिग्राम को खेल - कूद के शिवाय और कुछ न सूझता था। और धीरे धीरे वह और ही कुसंग में गिरता जा रहा था। और उसे माँ की याद सिर्फ खाना खाने और पैसे लेने के लिए ही आती थी।

                     अब शालिग्राम रात को देर घर लौटता। माँ देर तक उसकी प्रतीक्षा करती, उसे समझाती परन्तु बालक  कहाँ मानता था ! और माँ  उसे केवल एक बात मानने को कहती कि तुम ऐसा कोई कर्म न करो जिससे तुम्हारे माता-पिता के नाम को दाग लगे।

     शालिग्राम यह सब बाते अपने दोस्तों को सुनाया करता। दोस्त सुनते -सुनते तंग आ गये। आखिर एक दिन उन्होंने कहा - तुम एक दिन माँ का काम तमाम क्यों  नहीं करते !उसके लिए साधन तुम्हें हम देंगे। शालिग्राम ने कहा - हाँ, अब ऐसा करना  पड़ेगा। और वो दोस्तों से साधन लेकर रात को घर की तरफ चल दिया।

      उस दिन वह रात को 12 बजे घर पहुँचा। सर्दी का मौसम था। वर्षा हो रही थी और वह ठंड के मरे तड़प रहा था। माँ बेचारी तो पहले से  इंतज़ार कर रही थी। उसने उसे वस्त्र दिये, खाना खिलाया और प्यार करते हुए वे शिक्षा भी देती रही। शालिग्राम ने तो मन में कुछ और ही ठानी हुई थी। उसी सोच को सोचते सोचते उसे नींद आ गई और कुछ देर बाद स्वप्न में को गए और स्वप्न में भी उसी उधेड़बुन में रहा। स्वप्न में उसने मौका पाकर अपनी माँ के साथ सदा के लिए सम्बन्ध तोड़ने का कार्य कर लिया और अपनी माँ के शीर्ष को बाहर ले चला ताकि दोस्तों को अपनी वफादारी का प्रमाण दिखाये।

     स्वप्न में ही शालिग्राम ने देखा कि वह धीरे - धीरे चल रहा था। बाहर वर्षा के कारण रस्ते में फिसलन हो रही थी। शालिग्राम फिसल कर कुहनियों के बल गिर पड़ा.…  .! 'हाय - यह शब्द उसके मुख से अनायास ही निकल गया। परन्तु इसके साथ ही एक कोमल ध्वनि उसके कानो में पड़ी - बेटा, तुझे कहीं चोट तो नहीं आई। वह इधर - उधर देखने लगा परन्तु यह आवाज़ तो उसकी माँ के शीर्ष से सुनाई दी थी। शालिग्राम की आँखों में पानी भर आया। वह अपने को कोसने लगा। वह माँ ,माँ ,माँ.… ऐसे चिल्लाने लगा। स्वप्न में 'माँ - माँ कहते उसकी आवाज़ बाहर भी सुनाई दी। माँ भागी - भागी उसके पास पहुँची और उसने कहा - बोलो बेटा ? शालिग्राम अपने सामने माँ को खड़ा देख आश्चर्याचाकित हुआ। वह सिसक -सिसक कर, 'माँ - माँ ' कहता हुआ अपनी माँ के गले से लग कर बोला - माँ, बताओ मेरे लिए क्या आज्ञा है ? मैं तुम्हे क्या दे सकता हूँ ? जो मेरे पास है, वह मैं अवश्य दूँगा।  माँ बोली - अच्छा तो आज मुझे अपनी बुराइयों का दान दे दो।

सीख - एक बात अपने सुनी होगी ठोकर से ही ठाकुर बनते है। लेकिन साद विवेक से काम लिया जय तो समय से पहले शै मार्ग पर चल सकते है वर्ना ठोकर खाने के बाद तो ठिकाने पर आ ही जाना है और जो ठोकर खाने के बाद भी नहीं सुधरते तो उनके लिए क्या काहे ?................  आप सोचिए।


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