Monday, April 21, 2014

Hindi Motivational Stories - ' सत्यवादी महाराज हरिश्चन्द्र '

सत्यवादी महाराज हरिश्चन्द्र

               सूर्यवंश में त्रिशंकु बड़े  प्रसिद्ध राजा हुए है। उनके पुत्र हुए महाराज हरिश्चंद्र। महाराज हरिश्चन्द्र  इतने प्रसिद्ध सत्यवादी और धर्मात्मा थे कि उनकी कीर्ति से देवताओं के राजा इन्द्र को भी डाह होने लगी। और एक बार इंद्र ने महर्षि विश्वामित्र को हरिश्चंद्र की परीक्षा लेने के लिए उकसाया। इन्द्र के कहने से महर्षि विश्वामित्रजी ने राजा हरिश्चन्द्र को योग बल से ऐसा स्वप्न दिखलाया कि राजा स्वप्न में ऋषिको सब राज्य दान कर रहे है। दूसरे दिन महर्षि विश्वामित्र अयोध्या आये और अपना राज्य माँगने लगे। स्वप्न में किये दानको भी राजा ने स्वीकार कर लिया और विश्वामित्र को सारा राज्य दे दिया।

             महाराज हरिश्चन्द्र पृथ्वी भर के सम्राट थे। अपना पूरा राज्य उन्होंने दान कर दिया था। अब दान की हुई भूमि में रहना उचित न समझकर स्त्री तथा पुत्र के साथ वे काशी आ गये, क्यों की पुराणों में यह वर्णन है कि काशी भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसी है। अंतः वह पृथ्वी में होने पर भी पृथ्वी से अलग मानी जाती है।
अयोध्या से जब राजा हरिश्चन्द्र चलने लगे तब विश्वामित्र ने कहा - ' जप, तप, दान आदि बिना दक्षिणा दिये सफल नहीं होते। तुमने इतना बड़ा राज्य दिया है तो उसकी दक्षिणा में एक हज़ार सोने की मोहरें और दो। '
राजा हरिश्चन्द्र के पास अब धन कहाँ था। राज्य - दान के साथ राज्य का सब धन तो अपने - आप दान हो चूका था। ऋषि से दक्षिणा देने के लिये एक महीने का समय लेकर वे काशी आये। काशी में उन्होंने अपनी पत्नी रानी शौव्या को एक ब्राह्मण के हाथ बेच दिया। राजकुमार रोहिताश्व बहुत छोटा बालक था। प्रार्थना करने पर ब्राह्मण ने उसे अपनी माता के साथ रहने की आज्ञा दे दी। स्वम् अपने को राजा हरिश्चन्द्र एक चाण्डाल के हाथ बेच दिया और इस प्रकार ऋषि विश्वामित्र को एक हज़ार मोहरें दक्षिणा में दी।

            महारानी शौव्या अब ब्राह्मण के घर में दासी का काम करने लगी। और चाण्डाल के सेवक होकर राजा हरिश्चन्द्र श्मशान घाट की चौकी दारी करने लगे। वहाँ जो मुर्दे जलाने को लाये जाते, उन से कर लेकर तब उन्हें जलाने देने का काम चाण्डाल ने उन्हें सौंपा था। एक दिन राजकुमार रोहिताश्व ब्राह्मण की पूजा के लिये फूल चुन रहा था और उस समय उसे साँप ने काट लिया। साँप का विष झटपट फ़ैल गया और रोहिताश्व मरकर भूमि पर गिर पड़ा। अब उसकी माता महारानी शौव्या को न कोई धीरज बाँधने वाला था और न उनके पुत्र की देह श्मशान पहुँचाने वाला था। वो रोती - बिलखती पुत्र की देह को हाथों पर उठाये अकेली रात में श्मशान पहुँची। वे पुत्रकी देह को जलाने जा रहीं थी कि हरिश्चन्द्र वहाँ आ गये और मरघट का कर माँगने लगे। बेचारी रानी के पास तो पुत्र की देह ढकने को कफ़न तक नहीं था। उन्होंने राजा को स्वर से पहचान लिया और गिड़गिड़ाकर कहने लगी - ' महाराज ! यह तो आपका ही पुत्र मरा पड़ा है। मेरे पास कर देने को कुछ नहीं है। राजा हरिश्चन्द्र को बड़ा दुःख हुआ ; किंतु वे अपने धर्म पर स्थिर बने रहे। उन्होंने कहा - 'रानी ! मैं यहाँ चाण्डाल का सेवक हूँ। मेरे स्वामी ने मुझे कह रखा है कि बिना कर दिये कोई यहाँ मुर्दा न जलाये। मैं अपने धर्म को नहीं छोड़ सकता। तुम मुझे कुछ देकर ही पुत्र की देह जलाओ। '

           रानी फुट-फुटकर रोने लगी और बोली - ' मेरे पास तो यही एक साड़ी है, जिसे मैं पहने हूँ, आप इसी में से आधा ले लें। ' जैसे ही रानी अपनी साड़ी फाड़ने चली, वैसे ही वहाँ भगवन नारायण, इन्द्र, धर्मराज आदि देवता और महर्षि विश्वामित्र प्रगट हो गये। महर्षि विश्वमित्रने बताया कि कुमार रोहित मरा नहीं है। यह सब तो ऋषि ने योग माया से दिखलाया था। राजा हरिश्चन्द्र को खरीदनेवाले चण्डालके रूप में साक्षात् धर्मराज थे।सत्य साक्षात् नारायण स्वरूप है।और तब सत्य के प्रभाव से राजा हरिश्चन्द्र महारानी शौव्या के साथ भगवन के धाम को चले गये।और यहाँ  महर्षि विश्वामित्र ने राजकुमार रोहिताश्व को अयोध्या का राजा बना दिया।

                                    सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र के सम्बन्ध में यह दोहा प्रसिद्ध है -
"चन्द्र टरै सूरज टरै , टरै  जगत व्यवहार। 
पै  ढूढव्रत हरिश्चन्द्र को , टरै  न सत्य विचार।।"

सीख - सत्य एक ऐसा गुण है जिसका कोई पर्याय नहीं है। इस लिए कहा गया है सत्य ही शिव है शिव ही सुन्दर है और सत्य ही ईश्वर है। तो आओ हम मिलकर इस सत्य का प्रयोग करें और जीवन को सफल बनाये। 

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