Saturday, March 29, 2014

Hindi Motivational Stories - " रात और दिन का अध्यात्मिक रहस्या "

' रात और दिन  '

    जैसे सूर्य अस्त होते ही अंधेरा होने लगता है। वैसे ही एक बदलाव हम देखते है, चारों तरफ अंधकार और रात्रि का प्रहार शुरू हो जाता है। तब बुढ़िया ने अपनी झोपड़ी में दीया जला लिया, और उसके पड़ोसियों ने भी अपने - अपने दीपक और लालटेन जला लिए, पहरेदारों ने टार्च निकाल लिए। गॉव तथा पटरी के दुकानदारों ने गैस जला दिये, शहरों में, रास्तों घरों, दुकानों और कंपनियो में बिजली के अनेकों बल्ब और लाइट जल उठे। मतलब यह कि सब ने कुछ न कुछ रोशनी का साधन कर लिया ताकि रात्रि में कुछ - कुछ कार्य व्यवहार चल सके। 

       कुछ बत्तियां तो रात्रि के प्रहार में ही मनुष्यों के सो जाने पर या तेल - ईधन समाप्त होने पर बुझ गई। परन्तु सूर्योदय होने पर सभी बत्तियां बुझा दी गई। यदि दिन में किसीका दिया जला दिखाई दे तो दूसरे उस से कहेंगे कि भाई अब दिन निकल आया है। अभी इसे बुझा दीजिये। ये हम सभी जानते है। ठीक इसी प्रकार सृष्टि चक्र में भी बेहद का दिन और बेहद कि रात होती है।

      इस  बेहद सृष्टि - चक्र में सतयुग और त्रेतायुग जो २५०० वर्ष में पूरा हुआ (जिसे ब्रह्मा का दिन कहते है ), उस समय जो लोग थे उनका जीवन देवी देवता समान था। फिर बाद में भारतवासी देवी - देवतायों का पुण्य क्षीण होने पर वे वाम - मार्गीय बने। उस में माया (काम, क्रोध आदि विकारो ) की प्रवेशता हो गई और द्वापर युग तथा कलियुग रूपी २५०० वर्ष ( जिसे ब्रह्मा कि रात कहते है ) कि ब्रह्मा कि रात का प्रहार शुरू हो गया - तब पूज्य भारतवासी देवता स्वम् ही पुजारी बन गये। वे हिन्दू कहलाने लगे और उन्होंने पूजा करना शुरू किया साथ ही साथ मनुष्यों ने वेध - शास्त्र बनाये और उन्हें पढ़ने लगे। और कुछ सन्यासी बन गये, उन्होंने घर - भार छोड़ा। जप, तप, दान, पुण्य आदि अनेक प्रकार के कर्म - कांड प्रचलित हो गये, मनुष्यों ने पाप धोने के लिए गंगा आदि पानी की नदियों को पतित - पावनी मानकर स्नान करना शुरू कर दिया।  कई मनुष्यों ने अन्य मनुष्यों को ही सद्गुरु माना और अनेक शिष्य बन गये। मतलब यह कि सब ने कुछ - न - कुछ साधन अपनाये, ताकि कुछ - न - कुछ अल्पकाल के लिए ही सही, शांति और सुख की प्राप्ति होती रहे। कई तो विकारों से लिप्त होकर माया की कुम्भकर्णी निद्रा में पूरी तरह ही सो गये। अन्य कई भक्ति द्वरा कुछ प्राप्ति होती न देख श्रद्धा खो बैठे। परन्तु कलियुग के अन्त में तो भक्तिमार्ग को पूरा होना ही है क्यों कि तब 'ब्रह्मा की रात्रि ' का समय पूरा होने पर, पाप का घड़ा भर जाने पर, ज्ञान सूर्य परमात्मा 'शिव' प्रजापिता ब्रह्मा के शरीर रुपी रथ में अवतरित होकर गीता - ज्ञान सुनाकर, मनुष्यात्माओं को योग-युक्त करके, पुनः सतयुग की स्थापना करते है।

सीख - समय के इस चक्र को जनने से हमें समय के साथ चलने में मदत मिलेंगी। और हम सब जनते  एक बार हाथ में आया समय निकल गया तो वो किसी भी कीमत से हमें वापस नहीं मिलेगा।  इस लिए समय  को जानो खुद को पहचानों खुदा को जानो और समय के साथ अपने को अपडेट करते रहो। वर्ना ऐसा न हो कहीं समय आगे निकल जाए और आप पीछे रह जाए। क्यों कि अभी नहीं तो कभी नहीं ये समय का कहना है। बेस्ट ऑफ़ लक !.... 

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