Tuesday, March 18, 2014

Hindi Motivational & Inspirational Stories - "गर्व न कीजिये "

 "गर्व न कीजिये "

        एक साधारण पढ़ा - लिखा परन्तु निर्धन व्यक्ति था। नौकरी कि तलाश में कलकत्ता पहुँचा और एक सेठ जी के यहाँ सफाई का काम करने लगा। प्रातः काल आता, लम्बी - चौड़ी दूकान में झाड़ू लगाता, दिन में कई बार करता और जब भी खाली समय मिलता तो उस समय वो पढता रहता था। उसकी लिखावट बहुत सुन्दर थी। एक दिन अचानक सेठ कि नज़र उसकी लिखावट कि तरफ गई, सेठ ने देखा तो पूछा - तू लिखना भी जानता है ? वह बोला थोडा बहुत लिख लेता हूँ। सेठ जी उसे चिट्टियां लिखने पर लगा दिया। कभी हिसाब - किताब की बात आती तो उसे बहुत समझ और सावधानी से देखता था। और एक दिन सेठ जी ने ऐसा पत्र देखा तो बोले - अरे , तू हिसाब - किताब भी जानता है ? उसने कहा - थोडा बहुत जानता हूँ।  तो सेठ जी ने उसे मुनीम के काम पर लगा दिया। और थोड़े दिनों में सेठ ने देखा कि ये तो अच्छा कर रहा है तो उसकी कार्य से प्रसन्न होकर उसे मुख्य मुनीम बना दिया।


       अब ये देख कर दूसरे मुनीम जलने लगे और सेठ जी के कान भरने लगे। अब वह दो कमरे वाले मकान में रहता था। दूसरे मुनीम उसकी गलती ढूंढ़ने में लगे रहते पर ये तो कोई गलती करता ही नहीं था। बस एक बात उनके समझ में नहीं आती थी , उसका एक कमरा खुला रहता था और दूसरा बन्द। हर रोज दूकान जाने से पहले  वह बन्द कमरे में जरुर जाता था। थोड़ी देर अन्दर रहता था फिर ताला लगाकर दूकान पर जाता। ये दूसरे मुनीम ने देख लिया और शक करने लगा। उसका काम बहुत अच्छा था और न किसी संदेह की गुंजाइश थी।  और ईर्षा करने वालों को यही सन्देह होता था कि वह बंद कमरे में क्यों जाता है ?और उस कमरे को बन्द क्यों रखता है ?


      एक दिन सब मुनीम मिलकर सेठ के पास गए , उन्होंने सेठ जी के कान भरे कि मुख्य़ मुनीम बेईमान है, रूपया खाता है और एक दिन वह आपका दिवाला निकाल देगा। और एक दिन प्लान के अनुसार जब मुख्य मुनीम अपने कमरे को खोल कर अन्दर गया, तब सब मुनीम मिलकर सेठ जी को ले गये और बोले कि चोर पकड़ा गया, बन्द कमरे में रुपये गिन रहा है। सेठ जी तेजी के साथ पहुँचे।  कमरा अन्दर से बन्द था, गुस्से से सेठ जी बोले - जल्दी दरवाजा खोलो, अन्दर क्या कर रहे हो? मुनीम ने कहा - थोड़ी देर में खोल देता हूँ। सेठ जी चिल्लाये - अभी दरवाजा खोलो, नहीं तो हम दरवाजा तोड़ देंगे। सभी मुनीम बड़े प्रसन्न थे। मुनीम ने दरवाजा  खोल दिया, सभी अन्दर गये। देखा कि वहाँ साधारण सन्दूक के अलावा कुछ नहीं था। सेठ जी ने कहा - इस सन्दूक में क्या है ?  मुख्य मुनीम हाथ जोड़कर बोला - सेठ जी, सन्दूक बन्द ही रहने दो। सभी मुनीम बोले कि इसी में तो सब - कुछ है, इस लिए ही खोलता नहीं है। सेठ जी ने कहा हट जा, हम खोलते है, हम इसे अवश्य देखेंगे। बड़े मुनीम कि आँखों में आँसू आ गये।  सेठ जी ने अपने हाथों से सन्दूक खोला और आश्चर्य से देखता ही रह गया। उस में थी एक फटी धोती, एक मैला कुर्ता और एक पुराना टुटा हुआ जूतो का जोड़ा। कोई भी इसका अर्थ नहीं समझ पाये। बड़े मुनीम ने हाथ जोड़ कर कहा महाराज, ये वे वस्त्र है जिन्हें पहन कर मै आपके पास आया था, आज आपने मुझे बड़ा मुनीम बनाकर सब सुख - सुविधाये दी है परन्तु मै अपनी वास्तविक्ता भूल न जाऊॅ, मेरे मन में अभिमान न आ जाये इस लिये हर रोज इन्हें देखता हूँ और प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि मुझे अभिमान से बचाते रहना। सेठ जी के आँसू बह चले और बड़े मुनीम को गले लगा लिया, फिर बोले - धन्य हो तुम ! तुम्हारी तरह दुनियाँ में सब लोग करें तो दुनियाँ से सब पाप नाश हो जाये क्यों कि अभिमान ही पाप का मूल है। कबीर जी ने कहा है - 

                                             कबीरा गरब न कीजिए, ऊँचा देख आवास !
                                             कल्हा परे भुई लेटना, ऊपर जमनी घास।।

     सीख - हमारे जीवन में हमें कितनी भी तरक्क़ी मिले पर हमें उस का अभिमान न हो। .... 






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