Monday, March 31, 2014

Hindi Motivational Stories - ' कतनी - करनी एक समान हो '

कतनी - करनी एक समान हो

              किसी सत्संग में महत्मा जी ज्ञानोपदेश कर रहे थे - बस, राम नाम की माला जपते रहो। राम नाम से भवसागर पार कर जायेंगे। सच्चे मन से राम का नाम लो, वह नाव का काम करेगी। श्रद्धालू में से एक परम भक्त भी था। सत्संग में आने के लिए उसे प्रतिदिन नदी पार करनी पड़ती थी। गुरु जी की वाणी उसके लिए राम - बाण बन गया। वह सच्चे मन से प्रभु - स्तुति कर ईश्वरीय अनुकम्पा (याद ) से नदी पार करता था। उसने एक बार सहृदयता से उपकृत होकर एक दिन वह महात्मा जी को अपने घर में आमंत्रित किया। और महात्मा जी उस परम भक्त का निमंत्रण स्वीकार किया और चल पड़े जब महात्मा जी नदी के किनारे पहुँचे तब वह कोई नाव न देख बोले - वत्स, नाव कहाँ है ? इसे पार कैसे किया जय ? भक्त ने कहा - महात्मा जी, आप भी मज़ाक करते है। आप ही ने कहा था, कि राम नाम लो तो सहज ही भवसागर से पार हो जाएंगे। और उसी दिन से मै यह आकर जब ईश्वर को याद करता हूँ तो सन्मुख नाव और नाविक हाज़िर हो जाते है।

                 देखिये, हाथ कंगन को आरसी क्या। तब भक्त ने ईश्वर - स्मरण किया। और उसी समय नाव और नाविक हाज़िर हुए ये देखकर महात्मा जी आत्मग्लानि से विह्ल हो गये। उन्हें उस चमत्कार को देख अपनी कथनी - करनी में असमानता पर बड़ी ही लज्जा का अनुभव हुआ। और उस दिन से वे भी कथनी और करनी को समान करने में लग गये।


सीख - कथनी - करनी को समान बनाने ने के लिए हमे अन्तर ध्यान करना होगा। एक बार समय दे अपने आप को जाने और समझे कि मेरी कथनी और करनी में कितना अन्तर है। उसके बाद ही हम उस पर कार्य कर सकेंगे वर्ना महात्मा जी कि तरह हमें भी आत्मा ग्लानि का अनुभव करना पड़ेगा। 

Sunday, March 30, 2014

Hindi Motivational Stories - ' सच्चा सुख सन्तुष्टता में '

सच्चा  सुख सन्तुष्टता में 

             एक सेठ बहुत सम्पत्ति का मालिक था। उसके पास इतनी सम्पत्ति थी कि उसकी १० पीढिय़ाँ बैठकर खा सकती थी।  परन्तु फिर भी वह सेठ हमेशा चिंताग्रस्त रहता था और चिन्ता का कारण यह था कि मेरी ११ वी पीढ़ी का क्या होगा ? उसके लिये तो मैंने कुछ भी नहीं जमा किया। इसी चिन्ता ने उसे रोगग्रस्त कर दिया और दिन - प्रतिदिन उसकी सेहत बिगड़ती चली गई। उसकी बिगड़ती सेहत को देखकर उसका एक शुभ - चिन्तक उसके पास आया और उसे सलाह दी कि पास के जंगल में एक साधु जी रहते है आप उनके पास जाये वे आपकी चिन्ता के निवारण अर्थ कोई न कोई उपाय जरुर करेंगे। यह सुनकर सेठ के मन में आशा की एक किरण जगी। अगले दिन वह साधु के दर्शन के लिये चल दिया। वैसे तो सेठ बहुत कंजूस था परन्तु कुछ प्राप्ति की आशा थी इसलिए अपने साथ एक फल की टोकरी ले गया था।

            जब सेठ साधू के पास गया तो उस समय साधू जी ध्यान में मग्न थे। सेठ ने बड़ी श्रद्धा से साधू को प्रणाम किया और फल की टोकरी आगे बढ़ाते हुए बोला - महाराज ! मेरी ये छोटी से भेंट स्वीकार कीजिये। साधु ने धीरे से आँखे खोली, फल की टोकरी और सेठ को देखा और कुटिया के दूसरे तरफ रखी फल की टोकरी की तरफ इशारा करते हुए साधू बोले - बेटा, भगवन (दाता ) ने मेरे लिए भोजन भेज दिया है। अब इसकी आवश्कता नहीं है। और हाँ, तुम अपनी समस्या मुझे बताओ। यदि सम्भव हुआ तो मै उसका समाधान तुम्हें बताऊँगा।

            साधू के यह बड़ी शान्ति थी और उस शान्ति के वातावरण में सेठ की आत्मा जग गयी। सेठ ने देखा साधू के पास एक टोकरा फल का है तो वह दूसरे की कामना ही नहीं रखता। और साधू के चेहरे पर शान्ति है। भरपूर है कोई कामना नहीं है। न आज कि न कल कि। .... येही बात खुद से सेठ ने जानी सोचा मेरे पास अथाह सम्पत्ति होते हुए भी मै और सम्पत्ति की कामनाओं में खोया रहता हूँ तथा दुःखी होता रहता हूँ। अपने अन्तर मन का बोध हुआ और वह साधू के चरणों में गिर पड़ा और बोला - महाराज, मेरे सवालों का जवाब मुझे मिल गया है।  आज मुझे मालूम हुआ है कि सच्चा सुख सन्तुष्टता में है न कि कामनाओं का विस्तार करने से।

सीख - वास्तव में आज मनुष्य अपनी इछाअो के पीछे भागता जा रहा है और ये इछाये मृगतृष्णा समान है। वो कभी पुरे नहीं होने है। लालच व्यक्ति को अंधा बना देता है। इस लिए इछाओ को कम करो अपने आप दुःख कम होगा।

                   

Saturday, March 29, 2014

Hindi Motivational Stories - " रात और दिन का अध्यात्मिक रहस्या "

' रात और दिन  '

    जैसे सूर्य अस्त होते ही अंधेरा होने लगता है। वैसे ही एक बदलाव हम देखते है, चारों तरफ अंधकार और रात्रि का प्रहार शुरू हो जाता है। तब बुढ़िया ने अपनी झोपड़ी में दीया जला लिया, और उसके पड़ोसियों ने भी अपने - अपने दीपक और लालटेन जला लिए, पहरेदारों ने टार्च निकाल लिए। गॉव तथा पटरी के दुकानदारों ने गैस जला दिये, शहरों में, रास्तों घरों, दुकानों और कंपनियो में बिजली के अनेकों बल्ब और लाइट जल उठे। मतलब यह कि सब ने कुछ न कुछ रोशनी का साधन कर लिया ताकि रात्रि में कुछ - कुछ कार्य व्यवहार चल सके। 

       कुछ बत्तियां तो रात्रि के प्रहार में ही मनुष्यों के सो जाने पर या तेल - ईधन समाप्त होने पर बुझ गई। परन्तु सूर्योदय होने पर सभी बत्तियां बुझा दी गई। यदि दिन में किसीका दिया जला दिखाई दे तो दूसरे उस से कहेंगे कि भाई अब दिन निकल आया है। अभी इसे बुझा दीजिये। ये हम सभी जानते है। ठीक इसी प्रकार सृष्टि चक्र में भी बेहद का दिन और बेहद कि रात होती है।

      इस  बेहद सृष्टि - चक्र में सतयुग और त्रेतायुग जो २५०० वर्ष में पूरा हुआ (जिसे ब्रह्मा का दिन कहते है ), उस समय जो लोग थे उनका जीवन देवी देवता समान था। फिर बाद में भारतवासी देवी - देवतायों का पुण्य क्षीण होने पर वे वाम - मार्गीय बने। उस में माया (काम, क्रोध आदि विकारो ) की प्रवेशता हो गई और द्वापर युग तथा कलियुग रूपी २५०० वर्ष ( जिसे ब्रह्मा कि रात कहते है ) कि ब्रह्मा कि रात का प्रहार शुरू हो गया - तब पूज्य भारतवासी देवता स्वम् ही पुजारी बन गये। वे हिन्दू कहलाने लगे और उन्होंने पूजा करना शुरू किया साथ ही साथ मनुष्यों ने वेध - शास्त्र बनाये और उन्हें पढ़ने लगे। और कुछ सन्यासी बन गये, उन्होंने घर - भार छोड़ा। जप, तप, दान, पुण्य आदि अनेक प्रकार के कर्म - कांड प्रचलित हो गये, मनुष्यों ने पाप धोने के लिए गंगा आदि पानी की नदियों को पतित - पावनी मानकर स्नान करना शुरू कर दिया।  कई मनुष्यों ने अन्य मनुष्यों को ही सद्गुरु माना और अनेक शिष्य बन गये। मतलब यह कि सब ने कुछ - न - कुछ साधन अपनाये, ताकि कुछ - न - कुछ अल्पकाल के लिए ही सही, शांति और सुख की प्राप्ति होती रहे। कई तो विकारों से लिप्त होकर माया की कुम्भकर्णी निद्रा में पूरी तरह ही सो गये। अन्य कई भक्ति द्वरा कुछ प्राप्ति होती न देख श्रद्धा खो बैठे। परन्तु कलियुग के अन्त में तो भक्तिमार्ग को पूरा होना ही है क्यों कि तब 'ब्रह्मा की रात्रि ' का समय पूरा होने पर, पाप का घड़ा भर जाने पर, ज्ञान सूर्य परमात्मा 'शिव' प्रजापिता ब्रह्मा के शरीर रुपी रथ में अवतरित होकर गीता - ज्ञान सुनाकर, मनुष्यात्माओं को योग-युक्त करके, पुनः सतयुग की स्थापना करते है।

सीख - समय के इस चक्र को जनने से हमें समय के साथ चलने में मदत मिलेंगी। और हम सब जनते  एक बार हाथ में आया समय निकल गया तो वो किसी भी कीमत से हमें वापस नहीं मिलेगा।  इस लिए समय  को जानो खुद को पहचानों खुदा को जानो और समय के साथ अपने को अपडेट करते रहो। वर्ना ऐसा न हो कहीं समय आगे निकल जाए और आप पीछे रह जाए। क्यों कि अभी नहीं तो कभी नहीं ये समय का कहना है। बेस्ट ऑफ़ लक !.... 

Friday, March 28, 2014

Hindi Motivational stories - " तजो बुराई, करो बड़ाई "

तजो बुराई, करो बड़ाई

           दो बड़े विद्वान जो कि आपस में दोस्त थे, किसी यजमान के निमंत्रण पर उसके घर पूजा - पाठ के लिए गये। वहाँ उन दोनों का काफी आदर - सत्कार हुआ। और दूसरे दिन सुबह उन में से एक विद्वान् हवन करने गया हुआ था तो यजमान  दूसरे विद्वान से कहा - महाराज, आपके दोस्त तो बहुत बड़े ही नेक इन्सान है। अब यह सुनते ही वह तपाक से बोला - अरे ! वह तो निरा बैल है। कुछ भी जानता नहीं है। वह तो मेरे साथ रहता है, इसलिये उसकी थोड़ी - बहुत इज्ज़त होती है, नहीं तो उसे कौन जानता है। वह तो यहाँ मेरे साथ आया हुआ है मेरी सेवा के लिए !

          उसी प्रकार अगले दिन जब दूसरा विद्वान हवन करने गया तो उस यजमान ने पहले वाले से कहा -महाराज ! आपके दोस्त तो बहुत नेक इन्सान तथा विद्वान है। यह सुनते ही पहले वाले विद्वान ने कहा - वह तो निरा गधा है गधा। वह तो मेरे साथ मेरा सामान ढोने के लिए तथा मेरी सेवा के लिए आया है। ये सुनते ही यजमान को बहुत आश्चर्य हुआ। दोनों साथ रहते भी दोनों के अन्दर मै बड़ा  -  मै बड़ा का  पहाड़ है।

          श्याम को जब दोनों विद्वान पूजा समाप्त करके खाना खाने के लिए आये तो यजमान ने दोनों के सामने हरी घास रख दी और बोले - महाराज! भोजन स्वीकार कीजिये।  दोनों विद्वान आग - बबूला हो गए। क्रोध और आवेश में वे यजमान से बोले - मुर्ख, तूने हमारा आपमान किया है। हम तुम्हें इसके लिये अभिशाप देंगे। मगर.… महाराज ! मेरा अपराध क्या है ? सरलता से यजमान ने प्रश्न किया। क्या हम लोग घास खायेंगे? क्या हम जानवर है ? गुस्से में दोनों विद्वानों ने पूछा।
 
        यजमान ने तुरन्त हाथ जोड़कर बड़े आदर से कहा - महाराज ! आप दोनों ने ही एक दूसरे को बैल तथा गधा बताया है और मेरे विचार से दोनों ही जानवरो का प्रिया भोजन घास है। अंतः मैंने तो आपके बताए अनुसार ही आपका प्रिय भोजन आपके सामने रखा है। फिर भी यदि मेरे से कोई गलती हो गई हो तो कृपया मुझे क्षमा करें।                                                                                                                            
         आज यह वास्तविकता हम देख सकते है। व्यक्ति हमेशा अपनी तारीफ और दूसरों कि बुराई ही करता है। जहाँ वह चाहता है कि मेरा सम्मान हो, मेरा नाम हो, लोग मेरी तारीफ करे, मुझे सलाम करे, ठीक उसके विपरीत वह यह भी चाहता है कि लोग उसके साथी कि बुराई करें, निंदा करें तथा उसे नीचा दिखाये। मनुष्य को चाहिये  कि वह अपने अवगुण देखें और दुसरो के गुण देखे लेकिन मनुष्य आपने गुणों को देखता और दूसरों के अवगुणों को देखता है। जिसके कारण मनुष्य को अपने जीवन में बार - बार घास (ठोकर ) खानी पड़ती है।


सीख - अगर व्यक्ति आपने अवगुण देखना और दूसरे के गुणो को देखना सुरु करें तो ठोकर खाने से बच जायेगा।इस लिये किसीने सच ही कहा है। गुण अवगुण में अन्तर जो जाने वाही सच्चा ज्ञानी है। 

Wednesday, March 26, 2014

Hindi Motivational stories - " पहले तोलो, फिर बोलो "

पहले तोलो, फिर बोलो

          कोयल कि मीठी आवाज़ सुनने के लिये सभी लालायित रहते है,  मगर कौवे की नहीं। क्यों ? तो चलिए जानते है एक कहानी के द्वारा - एक  बार एक कौवा बड़ी तेजी से उड़ा जा रहा था।  कोयल ने देखा कौवा बड़ी तेजी से जा रहा है। कोयल ने पूछा - भैय्या, इतने उतावले होकर कहाँ जा रहे हो ? क्या बात है ? कौवा बोला - बहन, मै जहाँ जाता हूँ मुझे भगा दिया जाता है, मुझे अपमान मिलता है, सत्कार नहीं।  इसलिये यहाँ से कही दूर, दूसरे देश में चला जा रहा हूँ। वहाँ तो अपरिचित ही रहूँगा।  तो सभी मुझे सम्मान की दुष्टि से देखेंगे।
     
        कोयल ने कहा - भय्या, बात तो ठीक है, लेकिन अपनी बोली बदलते जाना। कॉव- कॉव को बदल देना। अगर इस को नहीं बदला तो वहाँ भी आदर सत्कार नहीं मिलेगा। यह जो तुम्हारे प्रति घृणा है वह इस वाणी के कारण है। इस कर्कश और सुखी बोली को बदल दो, फिर कही भी चले जाओ सभी जगह सम्मान होगा।

         कौवा ध्यान से सुन रहा था। और उसी समय उसकी नज़र कोयल के गले में पड़े हार पर पड़ी, उसका मन ललचा गया कौवे ने पूछा - बहन यह उपहार तुम्हें कहाँ से मिला है ? कोयल ने कहा - मै स्वर्ग लोक गई थी वहाँ मैंने गाना सुनाया। मेरे गाने को सुनकर इंद्र प्रसन्न हुए और उन्होंने मुझे ये हार उपहार में दिया। कौवे ने भी सोचा कि सिर्फ गाना सुनाने से यदि हार मिलता है तो मै भी स्वर्ग में जाकर गाना सुनाऊँगी और हार ले आऊँगा। बिना अभ्यास किये ही कौवा  स्वर्गलोक गया और इंद्र से बोला - मै भू - लोक से आया हूँ। गाना सुनना चाहता हूँ। पहले मेरी बहन आई थी, अब मै आया हूँ। इंद्र ने सोचा - भाई और बहन का रंग - रूप तो मिलता है।  बहन का कण्ठ तो बड़ा सुरीला था। इसका भी सुरीला होगा। अब इसका भी सुन लेते है । इंद्र ने सारे देवताओं को भी सुनने के लिए आमंत्रित किया सभागार सभी देवताओं से भर गया। इंद्र ने कौवे से कहा अच्छा अब आप अपना गाना सुनाओ। कौवे ने गाना शुरू किया। कुछ ही क्षण में सभी चिल्ला उठे बन्द करो, बंद करो। हमारे कान फटे जा रहे है इंद्र ने कहा हे भू - लोक वासी ! बन्द करो अपना काँव - काँव करना और चले जाओ यहाँ से। कौवा सकपका गया और सोचने लगा - हार तो नहीं मिला, तिरस्कार ही मिला। कोयल ने ठीक ही कहा था कि बोली को बदले बिना जहाँ भी जाओगे निकाल दिए जाओगे। आदर नहीं मिलेगा।  इस लिए संसार में भी बोल का ही महत्व है। 

सीख - आज कि दुनियाँ में भी अगर कोई व्यक्ति कड़वे, कटाक्ष और कर्कश बोल बोलता है तो लोग उस से दूर ही रहते है। लेकिन कोई व्यक्ति सुमधुर, मिठे, अदारयुक्त बोल बोलता है तो सभी उसका सम्मान करते है। कहा भी जाता है - बोल के घाव तीर और तलवार से भी तीखे होते है। और इतिहास इसका साक्षी है कि कृष्ण के मधुर वचन सुनकर अर्जुन का मोह समाप्त हो गया और दूसरी ओर द्रोपदी के कटाक्ष के दो बोल से महाभारत हो गया। मंथरा ने अपने कड़वे बोल से कैकेई के अन्दर राम के प्रति भावना ही बदल दी। ऐसे अनेक उदहारण हमारे सामने है।  इस लिए मिठे बोलो, कम बोलो, आदर युक्त बोलो येही सफलता का राज है। 

Tuesday, March 25, 2014

Organic Farming - जैविक किटनाशक

जैविक किटनाशक 

दशपर्णी अर्क

दशपर्णी अर्क बनाने की विधि -

१. ५० लीटर पानी
२. २ किलो कड़वे नीम के पत्ते
३. १ किलो सीताफल के पत्ते
४. १ किलो कन्हेर के पत्ते
५. १ किलो पपीता के पत्ते
६. १ किलो करंजा के पत्ते
७. १ किलो हरी मिर्ची के पत्ते
८. १ किलो एरंडी के पत्ते
९. १ किलो गाय का गोबर
१०. २ लीटर गोमूत्र

अब इन सभी चीजों को एक साथ मिलकर १०० लीटर के एक ड्रम में सड़ने के लिए रख दीजिये २५ दिनों के लिए और उसके बाद उसे लकड़ी से मिलकर छान कर २ - २ लीटर की बोतल में भरकर रख दे और इस २ लीटर को १०० लीटर पानी में मिलकर खेती में स्प्रे करे या छिड़काव करे  ८ से १५ दिन में एक बार। अधिक जानकारी के लिए रेडियो शो सुनिये।



जैविक खाद और खेती



जैविक खाद और खेती

     प्राचीन काल में मानव स्वास्थ्य के अनुकुल तथा प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप खेती की जाती थी, जिससे जैविक और अजैविक पदार्थों के बीच आदान-प्रदान का चक्र निरन्तर चलता रहा था, जिसके फलस्वरूप जल, भूमि, वायु तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता था। भारत वर्ष में प्राचीन काल से कृषि के साथ-साथ गौ पालन किया जाता था, जिसके प्रमाण हमारे ग्रांथों में प्रभु कृष्ण और बलराम हैं जिन्हें हम गोपाल एवं हलधर के नाम से संबोधित करते हैं अर्थात कृषि एवं गोपालन संयुक्त रूप से अत्याधिक लाभदायी था, जोकि प्राणी मात्र व वातावरण के लिए अत्यन्त उपयोगी था।

     परन्तु बदलते परिवेश में गोपालन धीरे-धीरे कम हो गया तथा कृषि में तरह-तरह की रसायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग हो रहा है जिसके फलस्वरूप जैविक और अजैविक पदार्थों के चक्र का संतुलन बिगड़ता जा रहा है, और वातावरण प्रदूषित होकर, मानव जाति के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। अब हम रसायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों के उपयोग के स्थान पर, जैविक खादों एवं दवाईयों का उपयोग कर, अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं जिससे भूमि, जल एवं वातावरण शुद्ध रहेगा और मनुष्य एवं प्रत्येक जीवधारी भी स्वस्थ रहेंगे।

     जैविक खेती कृषि की यह एक विधि है जो जमीन कि उर्वरक शक्ति को बने रखती है और अच्छी गुणवत्ता वाला फ़सल किशन को मिलता है और यही आज कि मांग है।  १९९० के बाद से पुरे विश्व में जैविक उत्पद कि मांग बहुत बढ़ गया है और तब से ही किशन इस बात कि और आकर्षित हुए है।  लेकिन आज भी बहुत ऐसे किशन है जिन्हें जैविक विधि से खेती करने में असुविधा हो रही है। और आज हम उन्हीं किशानो को ध्यान में रखते हुए जैविक खाद का उपयोग और विधि बता रहे है। महिन्द्रा ठाकुर जो जीवाणु विशेषयज्ञ  है, उन के द्वारा सुनते है N. P. K. क्या है और कैसे ये जैविक तरीक़े से खेती में उपयोग करे और साथ ही साथ खेती कि सुरुवात बीज से लेकर फ़सल तक कि सारी बाते सुनेंगे। 






Monday, March 24, 2014

Hindi Motivational & Inspirational Stories - " सम्पूर्ण समर्पण "

सम्पूर्ण समर्पण

             सम्पूर्ण समर्पण कि बात को एक सुन्दर उदहारण से हम समझ पायेंगे इस में मुझे महत्मा बुद्ध और एक राजा कीं वह घटना याद आता है। दर्शनाभिलाषी एक राजा महत्मा बुद्ध के दर्शन करने गए।  महत्मा बुद्ध के लिये उसके मन में अपार श्राद्ध और प्रेम था।  इसलिये वह एक हार, जो विशिष्ट हीरे - मोतियों से बनी एक अदभुत कलाकृति थी, उसे एक हाथ में लिये तथा दूसरे में एक सुन्दर गुलाब का पुष्प लिये महत्मा बुद्ध को अर्पित करने उनके सन्मुख पहुँचे। जैसे ही राजा ने वह बहुमूल्य हार महत्मा बुद्ध को अर्पित करने के लिये अपना हाथ आगे बढ़ाया तुरन्त महत्मा बुद्ध बोले - राजन ! इसे गिरा दो। एक आघात सा लगा राजा को। क्यों कि उसे इस प्रत्यूत्तर की अपेक्षा नहीं थी अपने श्राधेय से। लेकिन उसने आदेश अनुसार उस हार को गिरा दिया। (राजा को इस बात का ख्याल भी नहीं था, कि बुद्ध ऐसा कुछ बोलेंगे अब और परीक्षा बाकी थी )

          राजा ने अपने मन में सोचा - शायाद लौकिक सम्पदा से बुद्ध को क्या लेना ? चलो, यह गुलाब का पुष्प ही भेंट कर दे। क्यों कि यह तो थोड़ा अलौकिक है। लेकिन जैसे ही राजा ने गुलाब के उस पुष्प को भेंट करने हेतु अपना दाहिना हाथ बढ़ाया महात्मा बुद्ध ने फिर कहा - इसे भी गिरा दो। राजा की परेशानी तो तब और अधिक बढ़ गई क्यों कि अब भेंट करने के लिये पुष्प के अतिरिक्त उसके पास और कुछ भी नहीं था। लेकिन महात्मा बुद्ध के कहने पर उसने उस सुन्दर गुलाब को भी गिरा दिया।

        राजा को अचानक अपने मै का ख्याल आया। उसने सोचा -  क्यों न मै अपने को ही समर्पित कर दू। और वह अपने दोनों खाली हाथ जोड़कर महत्मा बुद्ध के सामने झुक गया। बुद्ध ने फिर कहा - इसे भी गिरा दो।  महत्मा बुद्ध के सभी शिष्य जो वहाँ खड़े थे, यह सुनकर हँसाने लगे। तभी राजा को यह बोध हुआ कि यह कहना भी कि मै अपने को समर्पित करता हूँ, यह भी अहंकर का एक हिस्सा है। इस 'मै ' के अहंकर को भी गिरा देना है और उसने अपने को सम्पूर्ण रूप से महत्मा बुद्ध के चरणों पर गिरा दिया। महत्मा बुद्ध मुस्कुराये और बोले - राजन, तुम्हारी समझ अच्छी है।

सीख - किसी भी बात का कोई अहंकर ना हो वाही सच्ची समर्पणता है समर्पण होना और करना इस से भी परे होना है समर्पण बहार कि बात नहीं ये तो अन्दर की बात है आत्मा अनुभूति की बात है

         

Saturday, March 22, 2014

Hindi Motivational & Inspirational Stories - " प्यार बाँटते चलो "

प्यार  बाँटते चलो

               एक बार खलीफा हजरत उमर ने एक व्यक्ति को किसी प्रदेश का गवर्नर नियुक्त किया।  नियुक्ति पत्र देने से पहले उन्होंने उसे आवश्यक बातें भी समझा दी। उसी समय एक बालक उसके पास आ पहुँचा। हजरत उमर ने बच्चे को प्रेम से गोद में उठा लिया और तरह - तरह की आवाज़ें कर और बातें सुनाकर रिझाने लगे। यह देखकर वह व्यक्ति बोला कि खलीफा साहब, मेरे यहाँ तो चार बच्चे है लेकिन मैंने कभी भी उनके प्रति ऐसा प्यार या स्नेह नहीं जताया।

               ऐसी बात सुनकर हजरत उमर एक दम गम्भीर हो गये। उसी वक्त उन्होंने उस व्यक्ति का नियुक्ति पत्र उससे वापस ले लिया और उसके टुकड़े - टुकड़े करते हुए कहा कि मैंने तुम्हारी नियुक्ति की इसका अफसोस है। जब तुम बच्चों के साथ प्यार या स्नेह नहीं कर सकते तब तुम प्रजा के साथ कैसा व्यवहार करोगे। तुम्हारे हृदय में प्रेम का पवित्र झरना सुख चूका है।  अब तुम इस पद के योग्य नहीं हो।

सीख -  वर्तमान समय भी कलयुगी संसार में सच्चा आत्मिक स्नेह तो ज़रा भी नहीं रहा। यदि स्नेह नज़र आता है तो वह भी अल्पकाल का स्वार्थी या फिर मोह, काम आदि विकारों के वशीभूत। इस लिए अब सच्चे आत्मिक प्यार या स्नेह को जगाना है। येही समय कि माँग है।

Hindi Motivational & Inspirational Stories - " सच्चा मित्र - ' कर्म '

सच्चा मित्र - ' कर्म '

                    एक व्यक्ति था। उसके तीन मित्र थे। एक मित्र ऐसा था जो सदैव साथ देता था।  एक पल, एक क्षण भी बिछुड़ता नहीं था। दूसरा मित्र ऐसा था जो सुबह शाम मिलता।  और तीसरा मित्र ऐसा था जो बहुत दिनों में जब तब मिलता। और कुछ ऐसा हुआ एक दिन उस व्यक्ति को कोर्ट में जाना था। और किसी कार्यवश और किसी को गवाह बनाकर साथ ले जाना था। तो वह व्यक्ति अपने सब से पहले मित्र  के पास गया और बोला - मित्र क्या तुम मेरे साथ कोर्ट में गवाह बनकर चल सकते हो? तो वह बोला - माफ़ करो दोस्त, मुझे तो आज फुर्सत ही नहीं।  उस व्यक्ति ने सोचा कि यह मित्र मेरा हमेशा साथ देता था।  आज समय पर इसने मुझे इंकार कर दिया तो दूसरा मित्र की मुझे क्या आशा है। फिर भी हिम्मत रखकर दूसरे मित्र के पास गया और अपनी समस्या सुनाई तो दूसरे मित्र ने कहा कि मेरी एक शर्त है कि में सिर्फ कोर्ट के दरवाजा तक जाऊँगा, अन्दर तक नहीं। तो वह बोला कि बाहर के लिये तो मै ही बहुत हूँ मुझे तो अन्दर के लिये गवाह चाहिए। फिर वह तीसरे मित्र के पास गया तो तीसरा मित्र तुरन्त उसके साथ चल दिया।

                      अब आप सोच रहे होँगे कि वो तीन मित्र कौन है? तो चलिये सुनाते है। जैसे हमने तीन मित्रों की बात सुनी वैसे हर व्यक्ति के तीन मित्र होते है। सब से पहला मित्र है हमारा अपना शरीर। हम जहा भी जायेंगे, शरीर रुपी पहला मित्र  हमारे साथ चलता है। एक पल, एक क्षण भी हमसे दूर नहीं होता। दूसरा मित्र है शरीर के सम्बन्धी जैसे - माता - पिता, भाई - बहन, मामा - चाचा इत्यादि जिनके साथ रहते, जो सुबह - दुपहर शाम मिलते है। और तीसरा मित्र है - कर्म जो सदा ही साथ जाते है।

                      अब आप सोचिये कि आत्मा जब शरीर छोड़कर धर्मराज पूरी में माना कोर्ट में जाती है, उस समय शरीर रूपी पहला मित्र एक कदम भी आगे चलकर साथ नहीं देता, जैसे कि  उस पहले मित्र ने साथ नहीं दिया। दूसरा मित्र - सम्बन्धी श्मशान घाट तक याने कोर्ट के दरवाजे तक राम नाम सत्य है कहते हुए जाते है तथा वहाँ
से फिर वापिस लौट जाते है। और तीसरा मित्र आपके कर्म है जो सदा ही साथ जाते है चाहे अच्छे हो या बुरे।

सीख - अगर हमारे कर्म सदा हमारे साथ चलते है तो हमको अपने कर्म पर ध्यान देना होगा अगर हम अच्छे कर्म करेंगे तो किसी भी कोर्ट में जाने की जरुरत नहीं होगी। और धर्मराज भी सलाम करेगा।
                      

Friday, March 21, 2014

Hindi Motivational & Inspirational Stories - " रूहानी दर्पण "

रूहानी दर्पण

         एक बार महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहे थे। शिक्षा ग्रहण करने के बाद जब सब शिष्य चले गए तो एक शिष्य बैठा रह गया। बुद्ध  उससे पूछा कि तुम क्या चाहते हो ? तब उस शिष्य ने कहा - यदि भगवान् मुझे आज्ञा दे तो मै इस देश में घूमना चाहता हूँ। तब बुद्ध कुछ समय शान्ति में मग्न हुए और फिर कहा शिष्य से बुरे लोग तुम्हारी निन्दा करेँगे और गालियाँ देँगे, तब तुम्हें कैसा लगेगा ? इस प्रश्न का उत्तर में शिष्य ने कहा कि मै समझ लूँगा कि उन्होंने मुझ पर धूल नहीं फेकी या पत्थर नहीं मारे, तो यह लोग भले है। बुद्ध ने फिर कहा कुछ लोग धूल भी फेंक सकते है, पत्थर भी मार सकते है, तब क्या करोगे ? शिष्य ने कहा कि मै इस में भी भला समझूँगा कि उन्होंने मुझे हथियारों से नहीं मारा। इस के बाद बुद्ध ने फिर कहा कि इस देश में तो लुटेरों, ठगो, डाकुओ का भी निवास है, वे तुम्हें हथियारों से भी मार सकते है। ऐसा सुनकर शिष्य बड़े आराम से बोला कि वे लोग मुझे दयालु जान पड़ेंगे क्यों कि उन्होंने मुझे जीवित तो छोड़ा। क्यों कि यह संसार दुःख स्वरूप है। इस में बहुत दिन ज़िन्दा रहने से दुःख अधिक मिलते है। आत्महत्या तो पाप है, यदि कोई दूसरा मार दे तो यह उसकी दया है। ये बात अपने शिष्य से सुनकर महात्मा बुद्ध बहुत प्रसन्न हुऐ और उन्होंने उस शिष्य को कहा कि साधु वही है जो किसी को बुरा नहीं कहता, और देश भर में घूमने कि अनुमति दे दी।

 सीख  -  वास्तव में भगवन हमें ऐसा ही रूहानी दर्पण बनाते है जिस में कि किसी का कैसा भी रूप आए लेकिन उस रूप की, चाहे वह भयानक विकारी हो या फिर अच्छा, तो उसकी अच्छाई और बुराई उसे स्वतः दिखाई दे लेकिन हमारे ऊपर उसका कोई प्रभाव न हो। हमें तो अपने रूहानी नाशे में रहना है।

Thursday, March 20, 2014

Hindi Motivational & Inspirational Stories - समय पर कार्य का महत्त्व .

समय पर कार्य का महत्त्व  (Importance of Time)


       एक जंगल में वट का वृक्ष था जिस पर एक बन्दर और उसकी बन्दरिया रहती थी। एक दिन अचानक वहाँ तोता - मैना आकर उसी वृक्ष की डाली पर बैठे। बन्दर और बन्दरिया की जोड़ी को देखते हुए मैना ने तोते से कहा - यह समय इतना श्रेष्ट, सुन्दर और बलवान है, यह घडी इतनी उत्तम है कि इस वक्त यह बन्दर और बन्दरिया डाली से कूद पड़े तो जमीन पर गिरते ही राजकुमार और राजकुमारी के रूप में बदल जायेंगे (बन जायेंगे ) अब ये बात बन्दरिया ने सुन लिया सो उसने सारी बात बन्दर को बताया और तुरन्त एक साथ जमीन पर कूदने के लिए आग्रह किया। लेकिन अभिमान में चूर बन्दर ने उसकी बात न मानी और बोला - जा तू ही राजकुमारी बन जा मैं तो यह ही ठीक हूँ। बन्दरिया समजदार थी। वह जानती थी समय का महत्त्व क्या है, गया वक्त फिर नहीं आयेगा। वह कूद पड़ी और जमीन पर गिरते ही राजकुमारी बन गई। और जब बन्दर ने उसे राजकुमारी बनते देखा तो वह भी कूद पड़ा। लेकिन तब तक समय बदल चूका था। परिणाम यह हुआ कि बन्दर के गिरते ही बन्दर की टाँगे टूट गई। वह रोने और पछताने लगा। उसे स्वम् से आत्म - ग्लानि हो रही थी। मैना की बात न मानने के कारण यह हुआ। समय का कितना मोल है ये उसके समझ में आ गया था पर अब कुछ नहीं हो सकता था सिर्फ वह अपने आप को और अपने गलती पर गिड़गिड़ता रहा।

            

          और उसी समय वह से एक घुड़सवार और एक मदारी गुजर रहे थे। राजकुमार ने राजकुमारी को अपने घोड़े पर बिठाया और अपने राज्य की ऒर चला गया तथा मदारी ने बन्दर को दो डंडे मारे और शहर में नचाने के लिए ले गया।

सीख - समय का महत्त्व को जान हमें उस का सदुपयोग करना है ये भी एक कला है और एक बात तो याद रखना ही है, समय गया तो सब कुछ गया इस लिए समय को पहचानों।

Hindi Motivational & Inspirational Stories - " ऐसी वाणी बोलिये (युक्ति से मुक्ति ) "

ऐसी वाणी बोलिये (युक्ति से मुक्ति )

      एक राजा का सब से प्रिया हाथी बिल्कुल बूढ़ा हो चला था। गॉव के कुछ प्रमुख्य लोगो को बुलाकर राजा ने वह हाथी उनको सौंप दिया और कहा कि इसकी अच्छी तरह से संम्भाल करना। और हाथी का हाल - समाचार रोज हमें बताते रहना। लेकिन जो भी व्यक्ति इस हाथी के मरने की खबर लेकर आयेगा उसे मौत की सजा दी जायेगी। राजा कि बात को कौन टल सकता था। उस समय तो सब ने हाँ कह दिया और हाथी को अपने साथ लेकर आये और राजा के बताये अनुसार हाथी की अच्छी देख - रेख करते रहे। और कुछ दिनों के बाद वह हाथी मर गया। अब सब गॉव के लोगो के सामने एक समस्या थी कि यह खबर लेकर राजा के पास कौन जाये? बहुत सोच विचार चला सब के मन में डर था। और उसी गॉव में एक गरीब बूढ़ा रहता था, जो बहुत बुद्धिमान था। उसने सुना तो वह बोला कि मै राजा के पास जाऊँगा, आप लोग चिन्ता छोड़ दो, मुझे कुछ भी नहीं होगा। दूसरे दिन वह सवेरे दरबार में राजा के पास पहुँचा और हाथ जोड़ कर बोला - अन्नदाता, आपने हम सबको सम्भालने के लिए जो हाथी दिया था वह कल दोपहर से न तो श्वास ले रहा है, न कुछ खा रहा है, न करवटें बदल रहा है, जैसे लेटा था वैसे ही लेटा है और न ही पानी पी रहा है। राजा ने तुरन्त पूछा - क्या वह मर गया ? वह बोला - महाराज ! ये हम कैसे कहे ? ऐसी बात सुनकर राजा उसकी विवेकशीलता पर बहुत खुश हुआ और उसे अपने सभासदों के साथ ही रख दिया, साथ में बहुत सारे उपहार भी दिये। उस बुद्धिमान बुजुर्ग की तरह हम भी अपने सकारात्मक बोल से सभी का दिल जीत सकते है। इसी लिए हमें सर्व के प्रति सदा शुभ भावना और शुभ कामना रख सकारात्मक बोल ही बोलने चाहिये।

सीख - हमें कोई भी बोल बोलने के पहले सौ बार अवश्य सोच लेना चाहिए कि इस बोल का उस व्यक्ति पर क्या प्रभाव पड़ेगा।  विद्धानों ने कहा है - पहले तोलो, फिर बोलो। हमें यह शब्द सदा याद रखना चाहिए -

ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोए। 
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होये।।
 

Wednesday, March 19, 2014

Hindi Motivational & Inspirational Stories - " संतोषम् परम् सुखम् "

संतोषम् परम् सुखम् 

             एक विदेशी पर्यटक गर्मी के दिनों में भारत आया। उसने फलो की दूकान पर देखा कि विक्रेता दोपहर में आराम से बैठा था। न तो ग्राहक ही आ रहे थे और न ही ग्राहकों को बुलाने की चेष्टा ही कर रहा था। विदेशी को आश्चर्य हुआ। उसने कहा - ऐसे तुम्हारे फल कैसे बिकेंगे ?

दुकानदार बोला - साहब, दुकान का तो सबको पता है। आवाज़ क्या लगाना जिसको आना होगा वह                 आयेगा। 
विदेशी - ऐसे कैसे आयेंगे,  आवाज़ देंगे तो माल अधिक बिकेगा। 
दुकानदार ने पूछा - फिर .... 
विदेशी ने कहा - फिर तुम्हारी अच्छी कमाई होगी उससे और अधिक माल ला सकोगे, तुम्हारी दुकान               बड़ी हो जायेगी।  
दुकानदार प्रश्न करता गया फिर.…… 
विदेशी ने कहा - फिर तुम अपने साथ एक और सहायक रखना इसमें मजदूरों कि भी मदद ले सकते                 हो। अच्छी कमाई से तुम साहूकार बन जाओगे। उसके चुप होते ही दुकानदार ने                                             फिर वही प्रश्न किया
 दुकानदार ने कहा -…… फिर ……
विदेशी ने कहा - फिर तुम आलीशान मकान बना लेना, गाड़ियाँ खरीद लेना, ड्राईवर रखना। 
दुकानदार अभी भी पूछा फिर … … 
विदेशी ने कहा - फिर तुम आराम से मजे की ज़िन्दगी जी सकोगे। 
दुकानदार बोला - साहब, वह तो मै अभी भी आराम से, मजे से बैठा हूँ। इतना घूम - फिर कर आने की              क्या जरुरत है ! विदेशी निरुत्तर था। वह व्यर्थ की भाग दौड़ में उसे फॅसा नहीं सका। 
             
सीख - संतोष सभी गुणों का राजा है। इसे सर्वोतम धन भी कहा जाता है। 
          " जब आवे संतोष धन , सब धन धूरि समान "
भारतीय संस्कृति का यह आदर्श रहा है कि जो भी मिला है उसे ईश्वरीय देन समझ, अपने निर्धारित भाग्य का हिस्सा मान, उसी में राजी रहा जाये। 

" साई इतना दीजिये, जामे कुटुम्ब समाय। 
  आप भी भूखा  न रह , साधु ना भूखा जाय।।

            


Tuesday, March 18, 2014

Hindi Motivational & Inspirational Stories - " कला ! ईश्वर की अमूल्य देन "

कला ! ईश्वर की अमूल्य देन 

      एक राजा ने अपने राज्य में ढिंढोरा पिटवाया कि जो शिल्पी अपनी शिल्पकला से हमें भूल भुलय्या में डाल देगा उसे मुँह माँगा ईनाम देंगे और अगर ऐसा नहीं कर पायेगा तो मृत्यु दण्ड मिलेगा। एक युवा शिल्पी तैयार हो गया।  उसे 30 दिन की अवाधि दी गई। शिल्पी पुरूषार्थ में लग गया। दिन बीतने लगे। आखिर निश्चित दिन आ गया परन्तु शिल्पी की ऒर से राजा को कोई समाचार नहीं मिला। राजा क्रोधित हुए और हाथ में खुली तलवार लेकर शिल्पी के घर जा पहुँचा। ठोकर मारकर घर का दरवाजा खोला तो देखा कि सामने शिल्पी गहरी नींद में सोया हुआ था। राजा का गुस्सा चरम सीमा पर पहुँच गया।  वह शिल्पी को मारने दौड़ा। तभी द्वार के पीछे छिपे युवा शिल्पी ने सामने आकर कहा - जहाँपनाह ! सजा देनी ही है तो मै तो यहाँ हूँ, यह तो मेरे द्वारा बनाई गयी मेरी प्रतिमा है। 

      राजा शर्मिंदा भी हुआ और युवा शिल्पी को मुँह माँगा ईनाम भी दिया।  यह है शिल्पी की अदबुध साधना का फल। और अपने सुना होगा पिकासो नाम के एक सुविख्यात चित्रकार के गुलाब - पुष्प के चित्र पर भ्रमर रस  चूसने के लिए इकट्टे हो जाते थे और उसके बनाए बिल्ली के चित्र को देख कुत्ता घूरता रहता था। 

सीख - कलाएँ हम सब के अन्दर आज भी मौजूद है। जरुरत है स्वं को पहचानने की जिस के लिए थोडा समय निकलना होगा। तो हम कर सकते है अगर हम चाहे तो सब कुछ कर सकते है 

Hindi Motivational & Inspirational Stories - "गर्व न कीजिये "

 "गर्व न कीजिये "

        एक साधारण पढ़ा - लिखा परन्तु निर्धन व्यक्ति था। नौकरी कि तलाश में कलकत्ता पहुँचा और एक सेठ जी के यहाँ सफाई का काम करने लगा। प्रातः काल आता, लम्बी - चौड़ी दूकान में झाड़ू लगाता, दिन में कई बार करता और जब भी खाली समय मिलता तो उस समय वो पढता रहता था। उसकी लिखावट बहुत सुन्दर थी। एक दिन अचानक सेठ कि नज़र उसकी लिखावट कि तरफ गई, सेठ ने देखा तो पूछा - तू लिखना भी जानता है ? वह बोला थोडा बहुत लिख लेता हूँ। सेठ जी उसे चिट्टियां लिखने पर लगा दिया। कभी हिसाब - किताब की बात आती तो उसे बहुत समझ और सावधानी से देखता था। और एक दिन सेठ जी ने ऐसा पत्र देखा तो बोले - अरे , तू हिसाब - किताब भी जानता है ? उसने कहा - थोडा बहुत जानता हूँ।  तो सेठ जी ने उसे मुनीम के काम पर लगा दिया। और थोड़े दिनों में सेठ ने देखा कि ये तो अच्छा कर रहा है तो उसकी कार्य से प्रसन्न होकर उसे मुख्य मुनीम बना दिया।


       अब ये देख कर दूसरे मुनीम जलने लगे और सेठ जी के कान भरने लगे। अब वह दो कमरे वाले मकान में रहता था। दूसरे मुनीम उसकी गलती ढूंढ़ने में लगे रहते पर ये तो कोई गलती करता ही नहीं था। बस एक बात उनके समझ में नहीं आती थी , उसका एक कमरा खुला रहता था और दूसरा बन्द। हर रोज दूकान जाने से पहले  वह बन्द कमरे में जरुर जाता था। थोड़ी देर अन्दर रहता था फिर ताला लगाकर दूकान पर जाता। ये दूसरे मुनीम ने देख लिया और शक करने लगा। उसका काम बहुत अच्छा था और न किसी संदेह की गुंजाइश थी।  और ईर्षा करने वालों को यही सन्देह होता था कि वह बंद कमरे में क्यों जाता है ?और उस कमरे को बन्द क्यों रखता है ?


      एक दिन सब मुनीम मिलकर सेठ के पास गए , उन्होंने सेठ जी के कान भरे कि मुख्य़ मुनीम बेईमान है, रूपया खाता है और एक दिन वह आपका दिवाला निकाल देगा। और एक दिन प्लान के अनुसार जब मुख्य मुनीम अपने कमरे को खोल कर अन्दर गया, तब सब मुनीम मिलकर सेठ जी को ले गये और बोले कि चोर पकड़ा गया, बन्द कमरे में रुपये गिन रहा है। सेठ जी तेजी के साथ पहुँचे।  कमरा अन्दर से बन्द था, गुस्से से सेठ जी बोले - जल्दी दरवाजा खोलो, अन्दर क्या कर रहे हो? मुनीम ने कहा - थोड़ी देर में खोल देता हूँ। सेठ जी चिल्लाये - अभी दरवाजा खोलो, नहीं तो हम दरवाजा तोड़ देंगे। सभी मुनीम बड़े प्रसन्न थे। मुनीम ने दरवाजा  खोल दिया, सभी अन्दर गये। देखा कि वहाँ साधारण सन्दूक के अलावा कुछ नहीं था। सेठ जी ने कहा - इस सन्दूक में क्या है ?  मुख्य मुनीम हाथ जोड़कर बोला - सेठ जी, सन्दूक बन्द ही रहने दो। सभी मुनीम बोले कि इसी में तो सब - कुछ है, इस लिए ही खोलता नहीं है। सेठ जी ने कहा हट जा, हम खोलते है, हम इसे अवश्य देखेंगे। बड़े मुनीम कि आँखों में आँसू आ गये।  सेठ जी ने अपने हाथों से सन्दूक खोला और आश्चर्य से देखता ही रह गया। उस में थी एक फटी धोती, एक मैला कुर्ता और एक पुराना टुटा हुआ जूतो का जोड़ा। कोई भी इसका अर्थ नहीं समझ पाये। बड़े मुनीम ने हाथ जोड़ कर कहा महाराज, ये वे वस्त्र है जिन्हें पहन कर मै आपके पास आया था, आज आपने मुझे बड़ा मुनीम बनाकर सब सुख - सुविधाये दी है परन्तु मै अपनी वास्तविक्ता भूल न जाऊॅ, मेरे मन में अभिमान न आ जाये इस लिये हर रोज इन्हें देखता हूँ और प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि मुझे अभिमान से बचाते रहना। सेठ जी के आँसू बह चले और बड़े मुनीम को गले लगा लिया, फिर बोले - धन्य हो तुम ! तुम्हारी तरह दुनियाँ में सब लोग करें तो दुनियाँ से सब पाप नाश हो जाये क्यों कि अभिमान ही पाप का मूल है। कबीर जी ने कहा है - 

                                             कबीरा गरब न कीजिए, ऊँचा देख आवास !
                                             कल्हा परे भुई लेटना, ऊपर जमनी घास।।

     सीख - हमारे जीवन में हमें कितनी भी तरक्क़ी मिले पर हमें उस का अभिमान न हो। ....